भारतीय साहित्य और संस्कृति को हिंदी की देन बड़ी महत्त्वपूर्ण है। - सम्पूर्णानन्द।

कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra | Profile & Collections

कमला प्रसाद मिश्र का जन्म 1913 में फीजी के 'वाई रूकू' गांव में हुआ जो 'रॉकी 'रॉकी' जिला के अंतर्गत आता है। मिश्रजी के पिता जी गिरमिट मजदूर के रूप में भारत से फीजी आए थे। आपको फीज़ी का राष्ट्रीय कवि कहा जाता है।

1926 में 13 वर्ष की आयु में मिश्रजी अध्ययन हेतु वृंदावन गुरुकुल, भारत आ गए। लगभग ग्यारह वर्षों तक भारत में अध्ययन करने व 'आयुर्वेद शिरोमणी' की उपाधि पाने के पश्चात् आप फीजी लौटे।

आपने संस्कृत, अँग्रेज़ी और हिंदी का गहन अध्ययन किया।

आपकी रचनाएं भारत की तत्कालीन श्रेष्ठ पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई जिनमें सरस्वती, माधुरी, विशाल भारत इत्यादि सम्मिलित थीं।

आपने फीज़ी में तीन दशकों से भी अधिक तक पत्रकारिता की। आपने 'जागृति' व 'जय फीज़ी' का प्रकाशन व संपादन किया।

आपने 1975 में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन (नागपुर, भारत) तथा 1983 में तृतीय विश्व हिंदी सम्मेलन (देहली, भारत) में फीज़ी प्रतिनिधि मण्डल के सदस्य के रूप में सम्मिलित हुए। 1978 में भारत सरकार द्वारा विश्व हिंदी पुरस्कार से अलंकृत हुए। 1982 में फीज़ी की हिंदी महापरिषद द्वारा सम्मानित किए गए।

साहित्य कृतियाँ: आपकी दो पुस्तकें प्रकाशित हुईं थी -

1) भूली हुई कहानियाँ
2) मुल्की की रचनाएं
3) कमला प्रसाद मिश्र की कविताएँ (सम्पादक: सुरेश ॠतुपर्ण)

निधन: 26 मई 1995 को आपका निधन हो गया।

 

कमला प्रसाद मिश्र | फीजी | Kamla Prasad Mishra's Collection

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मेरी कविता

मैं अपनी कविता जब पढ़ता उर में उठने लगती पीड़ामेरे सुप्त हृदय को जैसे स्मृतियों ने है सहसा चीरा

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ताजमहल

उमड़ा करती है शक्ति, वहीं दिल में है भीषण दाह जहाँहै वहीं बसा सौन्दर्य सदा सुन्दरता की है चाह जहाँ उस दिव्य सुन्दरी के तन मेंउसके कुसुमित मृदु आनन मेंइस रूप राशि के स्वप्नों को देखा करता था शाहजहाँ

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गिरमिट के समय

दीन दुखी मज़दूरों को लेकर था जिस वक्त जहाज सिधाराचीख पड़े नर नारी, लगी बहने नयनों से विदा-जल-धाराभारत देश रहा छूट अब मिलेगा इन्हें कहीं और सहाराफीजी में आये तो बोल उठे सब आज से है यह देश हमारा

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अवसर नहीं मिला

जो कुछ लिखना चाहा थावह लिख न कभी मैं पाया जो कुछ गाना चाहा थावह गीत न मैं गा पाया। मुझको न मिला अवसर हीअपने पथ पर चलने का था दीप पड़ा झोली मेंअवसर न मिला जलने का।जो दीप न जल पाता हैवह क्या प्रकाश फैलाये जिसको न मिला अवसर हीवह गीत भला क्या गाये।

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क्या मैं परदेसी हूँ ?

धवल सिन्ध-तट पर मैं बैठा अपना मानस बहलाता फीजी में पैदा हो कर भी मैं परदेसी कहलाता

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गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी

गली-गली में घूमे नसेड़ी दुनिया यहाँ मस्तानी गज़ब यह सूवा शहर मेरी रानी।

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