यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।

नरेन्द्र कोहली

जन्म: 6 जनवरी 1940 ई. को स्यालकोट ( पंजाब ) में जन्म हुआ। यह नगर अब पाकिस्तान में है।

माता: माता का नाम विद्यावंती था। उन का जन्म पंजाब के एक छोटे गांव के साधारण कृषक परिवार में ( वर्ष अज्ञात ) हुआ था। लड़कियों की शिक्षा की कोई व्यवस्था एवं परंपरा न होने के कारण वे निरक्षर ही रहीं। 1992 ई. में दिल्ली में अनुमानतः अस्सी - बयासी वर्ष की अवस्था में उन का देहांत हुआ।

पिता: पिता का नाम परमानन्द कोहली था। स्यालकोट के मध्यम वर्गीय नौकरी पेशा परिवार में 1903 ई. में जन्म हुआ था। वे अपनी आंखों के रोग के कारण आठवीं कक्षा में ही स्कूल से उठा लिए गए। पढ़ने और लिखने का शौक होते हुए भी फिर कभी आगे नहंीं पढ़ सके। उर्दू में लिखे अपने तीन चार उपन्यासों की पांडुलिपियां अपने लेखक पुत्रा के लिए उत्तराधिकार स्वरूप छोड़ गए। अविभाजित पंजाब के वन विभाग में अस्थाई क्लर्क के पद पर काम करते रहे। देश के विभाजन के पश्चात् पूंजी, डिग्री तथा अन्य किसी कौशल के अभाव के कारण जमशेदपुर में पटरी पर बैठ कर फल बेचने को बाध्य हुए। बाद में एक छोटी सी दुकान की। 1985 ई. में बयासी वर्ष की अवस्था में उन का देहांत हुआ।

शिक्षा: शिक्षा का आरंभ पांच-छह वर्ष की अवस्था में देवसमाज हाई स्कूल, लाहौर में हुआ। उस के पश्चात् कुछ महीने स्यालकोट के गंडासिंह हाई स्कूल में भी शिक्षा पाई। 1947 ई. में देश के विभाजन के पश्यचात् परिवार जमशेदपुर ( बिहार ) चला आया। यहां तीसरी कक्षा से पढ़ाई आरंभ हुई, धतकिडीह लोअर प्राइमरी स्कूल में। चौथी से सातवीं कक्षा ( 1949- 53 ) तक की शिक्षा, न्यू मिडिल इंग्लिश स्कूल में हुई। अंग्रेजी का मात्रा अक्षरज्ञान ही हुआ। शेष सारी शिक्षा उर्दू के माध्यम से हुई। आठवीं से ग्यारहवीं कक्षा ( 1953 - 57 ) की पढ़ाई मिसिज़ के. एम. पी. एम. हाई स्कूल, जमशेदपुर में हुई। हाई स्कूल में विज्ञान संबंधी विषयों का अध्ययन किया। अब तक की सारी शिक्षा का माध्यम उर्दू भाषा ही थी।

उच्च शिक्षा के लिए जमशेदपुर को- ऑपरेटिव कालेज में प्रवेश किया। विषय थे, अनिवार्य अंग्रेजी तथा अनिवार्य हिंदी के साथ मनोविज्ञान, तर्कशास्त्रा और विशिष्ट हिंदी। आई. ए. ( 1959 ई. ) की परीक्षा बिहार विश्वविद्यालय से दी। बी. ए. में अनिवार्य अंग्रेजी के साथ दर्शनशास्त्रा और हिंदी साहित्य ( ऑनर्स ) का चुनाव किया। 1961 ई. में जमशेदपुर को- ऑपरेटिव कॉलेज ( रांची विश्वविद्यालय ) से बी. ए. ऑनर्स ( हिंदी ) कर एम. ए. की शिक्षा के लिए दिल्ली चले आए। 1963 ई. में रामजस कॉलेज ( दिल्ली विश्वविद्यालय ) से हिंदी साहित्य में एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय से 1970 ई. में पी-एच. डी. ( विद्या वाचस्पति ) की उपाधि प्राप्त की।

आजीविका: पहली नौकरी दिल्ली के पी. जी. डी. ए. वी. ( सांध्य ) कालेज में हिंदी के अध्यापक ( 1963 - 65 ) के रूप में की। दूसरी नौकरी दिल्ली के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में 1965 ई. में आरंभ की और 1 नवंबर 1995 ई. को पचपन वर्ष की अवस्था में स्वैच्छिक अवकाश ले कर नौकरियों का सिलसिला समाप्त कर दिया। तब से अपनी पेंशन और लेखन पर निर्भर हैं।
परिवार: 1965 ई. में विवाह हुआ, या विवाह किया। पत्नी, डॉ. मधुरिमा कोहली, दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम. ए. ; पी-एच. डी. हैं। वे दिल्ली के कमला नेहरू कॉलेज के हिंदी विभाग से 1964 ई. से संबद्ध हैं और अब रीडर के पद पर कार्यरत हैं। पहली पुत्राी संचिता केवल चार महीने ही जीवित रही। दिसंबर 1967 ई. में जुड़वां संतानों - कार्त्तिकेय और सुरभि का जन्म हुआ। सुरभि केवल चौबीस दिनों की आयु ले कर आई थी। कार्त्तिकेय अब दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्रा में एम. ए. ; एम. फिल. कर रामलाल आनंद ( सांध्य ) कालेज, दिल्ली में अर्थशास्त्रा पढ़ा रहे हैं। पुत्रावधू वंदना एम. बी. बी. एस. कर अब चक्षुविज्ञान में एम. एस. कर रही हैं। छोटे पुत्रा अगस्त्य का जन्म 1975 ई.में हुआ। वे दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय से उच्चतर माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर इलिनॉय इंस्टिट्यूट ऑफ टैक्नॉलॉजी, शिकागो में यांत्रिकी की शिक्षा के लिए चले गए। अब अमरीका में कार्यरत हैं।

प्रथम रचना: लिखने और छपने की इच्छा बचपन से ही थी। छठी कक्षा में कक्षा की हस्तलिखित पत्रिका में पहली रचना प्रकाशित हुई। आठवीं कक्षा में स्कूल की मुद्रित पत्रिका में एक कहानी हिंदोस्तां: जन्नत निशां उर्दू में प्रकाशित हुई। हाई स्कूल के ही दिनों में हिंदी में लिखना आरंभ हुुआ। किशोर ( पटना ), आवाज़ ( धनबाद ) इत्यादि में कुछ आरंभिक रचनाएं, बाल लेखक के रूप में प्रकाशित हुईं। आई. ए. की पढ़ाई के दिनों में एक कहानी पानी का जग, गिलास और केतली , सरिता ( दिल्ली ) के नए अंकुर स्तंभ में प्रकाशित हुई थी। नियमित प्रकाशन का क्रम फरवरी 1960 ई. से आरंभ हुआ। इसलिए अपनी प्रथम प्रकाशित रचना दो हाथ ( कहानी, इलाहाबाद, फरवरी 1960 ई. ) को मानते हैं।

साहित्य

नरेन्द्र कोहली उपन्यासकार हैं, कहानीकार हैं, नाटककार हैं तथा व्यंग्यकार हैं। ये सब होते हुए भी , वे अपने समकालीन साहित्यकारों से पर्याप्त भिन्न हैं। साहित्य की समृद्धि तथा समाज की प्रगति में उन का योगदान प्रत्यक्ष है। उन्हों ने प्रख्यात् कथाएं लिखी हैं ; किंतु वे सर्वथा मौलिक हैं। वे आधुनिक हैं ; किंतु पश्चिम का अनुकरण नहीं करते। भारतीयता की जड़ों तक पहुंचते हैं, किंतु पुरातनपंथी नहीं हैं।

1960 ई. में नरेन्द्र कोहली की कहानियां प्रकाशित होनी आरंभ हुई थीं, जिन में वे साधारण पारिवारिक चित्रों और घटनाओं के माध्यम से समाज की विडंबनाओं को रेखांकित कर रहे थे। 1965 ई.के आस पास वे व्यंग्य लिखने लगे थे। उन की भाषा वक्र हो गई थी, और देश तथा राजनीति की विडंबनाएं सामने आने लगी थीं। उन दिनों लिखी गई अपनी रचनाओं में उन्हों ने सामाजिक और राजनीतिक जीवन की अमानवीयता, क्रूरता तथा तर्कशून्यता के दर्शन कराए। हिंदी का सारा व्यंग्य साहित्य इस बात का साक्षी है कि अपनी पीढ़ी में उन की सी प्रयोगशीलता, विविधता तथा प्रखरता कहीं और नहीं हैं।

उन्होंने पारिवारिक और सामाजिक उपन्यासों की भी रचना की ; किंतु केवल सामाजिक चित्राण तथा विडंबनाओं और विकृतियों की भतर््सना मात्रा से उन्हें संतोष नहीं हुआ। वे कुछ बहुत सार्थक करना चाहते थे। उन्हों ने अनुभव किया कि जीवन के संकीर्ण , संक्षिप्त तथा सीमित चित्राण से साहित्य अपनी परिपूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता ; न समाज ही उस से अधिक लाभान्वित हो सकता है। हीन वृत्तियों के चित्राण से हीनता तथा हीन भावनाओं की वृद्धि हो गी। अतः साहित्य का लक्ष्य है, जीवन के उदात्त, महान् तथा सात्विक पक्ष का चित्राण करना।

नरेन्द्र कोहली ने रामकथा से सामग्री ले कर चार खंडों में 1800 पृष्ठों का एक बृहदाकार उपन्यास लिखा। कदाचित् संपूर्ण रामकथा को ले कर , किसी भी भाषा में लिखा गया, यह प्रथम उपन्यास है। उपन्यास है, इसलिए समकालीन, प्रगतिशील, आधुनिक तथा तर्काश्रित है। इस की आधारभूत सामग्री भारत की सांस्कृतिक परंपरा से ली गई है, इसलिए इस में जीवन के उदात्त मूल्यों का चित्राण है, मनुष्य की महानता तथा जीवन की अबाधता का प्रतिपादन है। हिंदी का पाठक जैसे चौंक कर, किसी गहरी नीन्द से जाग उठा। वह अपने संस्कारों और बौद्धिकता के द्वंद्व से मुक्त हुआ। उसे अपने उद्दंड प्रश्नों के उत्तर मिले, शंकाओं का समाधान हुआ। इस कृति का अभूतपूर्व स्वागत हुआ ; और हिंदी उपन्यास की धारा की दिशा ही बदल गई।

नरेन्द्र कोहली ने एक उपन्यास अभिज्ञान कृष्णकथा को ले कर लिखा। कथा राजनीतिक है। निर्धन और अकिंचन सुदामा को सामर्थ्यवान श्रीकृष्ण, सार्वजनिक रूप से अपना मित्रा स्वीकार करते हैं, तो सामाजिक, व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों में सुदामा की साख तत्काल बढ़ जाती है। ... किंतु इस कृति का मेरुदंड भगवद्गीता का कर्म सिद्धांत है। इस कृति में न परलोक है, न स्वर्ग और नरक, न जन्मांतरवाद। कर्म सिद्धांत को इसी पृथ्वी पर एक ही जीवन के अंतर्गत, ज्ञानेन्द्रियों और बुद्धि के आधार पर , वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप व्याख्यायित किया गया है। वह भी एक सरस उपन्यास के एक रोचक खंड के स्रूप में। यह अद्भुत है, अभूतपूर्व है। आप इस तर्कशैली की किसी भी रूप में अवहेलना नहीं कर सकते।

तब नरेन्द्र कोहली ने महाभारत कथा के आधार पर , अपने नए उपन्यास महासमर की रचना आरंभ की। महाभारत एक विराट कृति है, जो भारतीय जीवन, चिंतन दर्शन तथा व्यवहार को मूर्तिमंत रूप में प्रस्तुत करती है। नरेन्द्र कोहली ने इस कृति को अपने युग में पूर्णतः जीवंत कर दिया है। उन्हों ने अपने इस उपन्यास में जीवन को उस की संपूर्ण विराटता के साथ अत्यंत मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जीवन के वास्तविक रूप से संबंधित प्रश्नों का समाधान वे अनुभूति और तर्क के आधार पर देते हैं। इस कृति में आप महाभारत पढ़ने बैठें गे और अपना जीवन पढ़ कर उठें गे। युधिष्ठिर, कृष्ण , कुुंती, द्रौपदी, बलराम, अर्जुन, भीम, तथा कर्ण आदि चरित्रों को अत्यंत नवीन रूप में देखें गे ; किंतु नरेन्द्र कोहली की मान्यता है कि वही उन चरित्रों का महाभारत में चित्रित वास्तविक स्वरूप है।

नरेन्द्र कोहली ने एक ओर उपन्यास शृंखला आरंभ कर पाठकां को चकित कर दिया। यह है, तोड़ो कारा तोड़ो। यह शीर्षक , रवीन्द्रनाथ ठाकुर के एक गीत की एक पंक्ति का अनुवाद है ; किंतु उपन्यास का संबंध स्वामी विवेकानन्द की जीवनकथा से है। यह कार्य सब से कठिन था। स्वामी जी का जीवन निकट अतीत की घटना है। उन के जीवन की सारी घटनाएं सप्रमाण इतिहासांकित हैं। इस में उपन्यासकार की अपनी कल्पना अथवा चिंतन के लिए कोई विशेष अवकाश नहीं है। अपने नायक के व्यक्तित्व और चिंतन से तादात्म्य ही उन के लिए एक मात्रा मार्ग है। ... और फिर स्वामी जी की प्रामाणिक जीवनियों के पश्चात् उपन्यास की आवश्यकता ही क्या थी ? शायद उपन्यास की आवश्यकता उन लोगों के लिए थी, जो स्वामी जी से प्रेम तो करते थे ; किंतु उन की जीवनियों अथवा वैचारिक निबंधों को पढ़ने, समझने और धारण करने की क्षमता नहीं रखते, अथवा उस में रुचि नहीं रखते। नरेन्द्र कोहली के इस सरस उपन्यास के प्रत्येक पृष्ठ पर , उपन्यासकार के अपने नायक के साथ तादात्म्य को देख कर पाठक चकित रह जाता है। स्वामी विवेकानन्द का जीवन बंधनों तथा सीमाओं के अतिक्रमण के लिए सार्थक संघर्ष था: बंधन चाहे प्रकृति के हों, समाज के हों, राजनीति के हों, धर्म के हों , अध्यात्म के हों। नरेन्द्र कोहली के शब्दों में, \"स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व का आकर्षण ... आकर्षण नहीं, जादू ... जादू जो सिर चढ़ कर बोलता है। कोेई संवेदनशील व्यक्ति उन के निकट जा कर , सम्मोहित हुए बिना नहीं रह सकता। ... और युवा मन तो उत्साह से पागल ही हो जाता है। कौन सा गुण था, जो स्वामी जी में नहीं था। मानव के चरम विकास की साक्षात् मूर्ति थे वे। भारत की आत्मा... और वे एकाकार हो गए थे। उन्हें किसी एक युग, प्रदेश, संप्रदाय अथवा संगठन के साथ बांध देना, अज्ञान भी है और अन्याय भी।\" ऐसे स्वामी विवेकानन्द के साथ तादात्म्य किया है नरेन्द्र कोहली ने। उन का यह उपन्यास ऐसा ही तादात्म्य करा देता है, पाठक का उस विभूति से।

रचनाएं

उपन्यास:
1. पुनरारंभ- 1972 /1994 (वाणी प्रकाशन)
2. आतंक - 1972 (राजपाल एंड संस)
3. आश्रितों का विद्रोह-1973 (नेशनल पब्लिशिंग हाउस)
4. साथ सहा गया दुख -1974 (राजपाल एंड संस)
5. मेरा अपना संसार-1975 ( पराग प्रकाशन )
6. दीक्षा - 1975 ( पराग प्रकाशन )
7. अवसर -1976 ( पराग प्रकाशन )
8. जंगल की कहानी -1977 (नेशनल पब्लिशिंग हाउस )
9. संघर्ष की ओर - 1978 ( पराग प्रकाशन )
10. युद्ध ( दो भाग)-1979 (पराग प्रकाशन )
11. अभिज्ञान - 1981 ( राजपाल एंड संस )
12. आत्मदान- 1983 ( लोकभारती प्रकाशन )
13. प्रीतिकथा-1986 ( किताबघर )
14. बंधन ( महासमर-1 ) -1988 ( वाणी प्रकाशन )
15. अभ्युदय ( दो खंड ) -1989 ( अभिरुचि प्रकाशन )
16. अधिकार ( महासमर-2 ) - 1990 ( वाणी प्रकाशन )
17. कर्म (महासमर-3) -1991 ( वाणी प्रकाशन )
18. निर्माण ( तोड़ो कारा तोड़ो-1) -1992 (किताबघर)
19. साधना (तोड़ो कारा तोड़ो-2)-1993 (किताबघर )
20. धर्म (महासमर-4 ) -1993 ( वाणी प्रकाशन )
21. क्षमा करना जीजी - 1995 (भारतीय ज्ञानपीठ)
22. अंतराल ( महासमर-5 ) -1995 ( वाणी प्रकाशन )
23. प्रच्छन्न ( महासमर-6 ) -1997 (वाणी प्रकाशन )
24. प्रत्यक्ष ( महासमर -7 )-1998 ( वाणी प्रकाशन ).

कहानी -संग्रह:

1. परिणति-1969 ( नेशनल पब्लिशिंग हाउस )
2. कहानी का अभाव-1977 ( पराग प्रकाशन )
3. दृष्टिदेश में एकाएक -1979 ( पराग प्रकाशन )
4. शटल -1982 ( पराग प्रकाशन )
5. नमक का कैदी - 1983 ( पराग प्रकाशन )
6. निचले फ्लैट में - 1984 ( पराग प्रकाशन )
7. नरेन्द्र कोहली की कहानियां - 1984 ( विकास पेपर बैक )
8. संचित भूख - 1985 ( पराग प्रकाशन )
9. समग्र कहानियां ( दो खंड ) - 1991 ( पराग प्रकाशन )
10. मेरी तेरह कहानियां - 1998 ( अभिरुचि प्रकाशन ).

नाटक:

1. शंबूक की हत्या -1975 ( कल्पतरु प्रकाशन )
2. निर्णय रुका हुआ - 1985 ( कल्पतरु प्रकाशन )
3. हत्यारे - 1985 ( कल्पतरु प्रकाशन )
4. गारे की दीवार - 1986 ( कल्पतरु प्रकाशन )
5. समग्र नाटक - 1990 ( पुस्तकायन )
6. संघर्ष की ओर - 1998 ( अभिरुचि प्रकाशन )
7. किष्किंधा - 1998 ( अभिरुचि प्रकाशन )
8. अगस्त्यकथा - 1998 ( अभिरुचि प्रकाशन ).

व्यंग्य:

1. एक और लाल तिकोन - 1970 ( नेशनल पब्लिशिंग हाउस )
2. पांच एब्सर्ड उपन्यास -1972 / 1995 ( भारतीय प्रकाशन संस्थान )
3. जगाने का अपराध - 1973 ( नेशनल पब्लिशिंग हाउस )
4. मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं- 1977 ( नेशनल पब्लिशिंग हाउस )
5. आधुनिक लड़की की पीड़ा - 1978 ( नेशनल पब्लिशिंग हाउस )
6. त्रासदियां - 1982 ( राजपाल एंड संस )
7. परेशानियां - 1986 ( किताबघर )
8.समग्र व्यंग्य - 1991 ( किताबघर )
9. आत्मा की पवित्राता - 1996 ( भारतीय ज्ञानपीठ )
10. गणतंत्रा का गणित - 1997 ( वाणी प्रकाशन )
11. मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएं - 1997 ( अभिरुचि प्रकाशन ).
12.देश के शुभचिंतक ( समग्र व्यंग्य-1 ) 1998 ( वाणी प्रकाशन )
13. त्राहि-त्राहि ( समग्र व्यंग्य-2 ) 1998 ( वाणी प्रकाशन )
14. इश्क एक शहर का (समग्र व्यंग्य -3 ) 1998 ( वाणी प्रकाशन )

निबंध:

1. नेपथ्य - 1983 ( किताबघर )
2. माजरा क्या है - 1989 ( राजपाल एंड संस )
3. जहां है धर्म, वहीं है जय -1993 ( वाणी प्रकाशन )
4. किसे जगाऊं ? - 1996 ( वाणी प्रकाशन ).

बाल साहित्य:
1. गणित का प्रश्न - 1978 ( प्रवीण प्रकाशन )
2. आसान रास्ता - 1984 ( किताबघर )
3. एक दिन मथुरा में - 1991 ( पराग प्रकाशन )
4. हम सब का घर - 1991 ( वाणी प्रकाशन )
5. तुम अभी बच्चे हो - 1995 ( अभिरुचि प्रकाशन )
6. समाधान - 1997 ( अभिरुचि प्रकाशन )
7. कुकुर - 1997 ( अभिरुचि प्रकाशन ).

शोध समीक्षा:

1. प्रेमचंद के साहित्य सिद्धांत - 1965 ( अशोक प्रकाशन )
2. कुछ प्रसिद्ध कहानियों के विषय में - 1967 ( उमेश प्रकाशन )
3. प्रेमचंद - 1976 ( विक्रांत प्रेस )
4. हिंदी उपन्यास: सृजन और सिद्धांत - 1989 ( वाणी प्रकाशन )
5. प्रेमचंद - 1991 ( वाणी प्रकाशन )

संस्मरण:
1. बाबा नागार्जन - 1987 ( वाणी प्रकाशन )
2. प्रतिनाद - 1996 ( वाणी प्रकाशन )

अन्य:
1. नरेन्द्र कोहली की चुनी हुई रचनाएं - 1990 ( किताबघर )


पुस्तकों का अनुवाद
1. आत्मदान ( कन्नड़ ) 1987,अनुवादक: श्री. रा. ना. ना. मूर्ति, प्रकाशक: संक्रांति पब्लिशर्स, फोर्ट, आजमपुर ( कर्नाटक )
2. दीक्षा ( उड़िया ) अनुवादक: डॉ. अजयकुमार पटनायक , प्रकाशक: उडिया हिंदी परिवेश, सूताहाट, कटक -1
3. दीक्षा ( नेपाली ) 1978 प्रकाशक: सुधा, अक्तूबर 1978 ई. गांतोक
4. दीक्षा ( मराठी ) 1990 अनुवादक: द. प. जोशी, प्रकाशक: मराठी सााहित्य परिषद् , हैदराबाद।
5. दीक्षा ( कन्नड़ ) 1981, अनुवादक: तिप्पेस्वामी तथा नागराज, प्रकाशक: आनन्द प्रकाशन, 1055 देवपार्थिव रोड, चामराज मुहल्ला, मैसूर।,
6. दीक्षा ( अंग्रेजी ) 1997, अनुवादक: सोमदेव कोहली, प्रकाशक: क्रियेटिव पब्लिशर्स, 20 /42, पटेल नगर, नई दिल्ली 110008
7. महासमर-1 ( बंधन ) उड़िया 1996, अनुवादक: सुभाषचंद्र महापात्रा, प्रकाशक: प्रजातंत्रा प्रचार समिति, कटक।
8. अभिज्ञान ( कन्नड़ ) , अनुवादक: डी. एन. श्रीनाथ , प्रकाशक: काव्यकला प्रकाशन, 1273, सातवां क्रॉस, चंद्र ले आऊट, विजयनगर, बंगलूर - 560040
9. साथ सहा गया दुख ( पंजाबी ) अनुवादक: प्रकाशक: भाषा विभाग पंजाब, पटियाला।
10. महासमर -2 ( अधिकार ) उड़िया , अनुवादक: सुभाषचंद्र महापात्रा, प्रकाशक: प्रजातंत्रा प्रचार समिति, कटक।
11. निर्णय रुका हुआ ( मराठी ) 1984, अनुवादक: लीला श्रीवास्तव , प्रकाशक: श्रीविशाख प्रकाशन, 58 शनिवार पेठ, पुणे।

पुरस्कार तथा सम्मान
1. राज्य साहित्य पुरस्कार 1975-76 ( साथ सहा गया दुख ) शिक्षा विभाग, उत्तरप्रदेश शासन, लखनऊ।
2. उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार 1977-78 ( मेरा अपना संसार ) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
3. इलाहाबाद नाट्य संघ पुरस्कार 1978 ( शंबूक की हत्या ) इलाहाबाद नाट्य संगम, इलाहाबाद।
4. उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार 1979-80 ( संघर्ष की ओर ) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
5. मानस संगम साहित्य पुरस्कार 1978 ( समग्र रामकथा ) मानस संगम, कानपुर।
6. श्रीहनुमान मंदिर साहित्य अनुसंधान संस्थान विद्यावृत्ति 1982 ( समग्र रामकथा ) श्रीहनुमान मंदिर साहित्य अनुसंधान संस्थान, कलकत्ता।
7. साहित्य सम्मान 1985-86 ( समग्र साहित्य ) हिंदी अकादमी, दिल्ली।
8. साहित्यिक कृति पुरस्कार 1987-88 ( महासमर-1, बंधन ) हिंदी अकादमी, दिल्ली।
9. डॉ. कामिल बुल्के पुरस्कार 1989-90 ( समग्र साहित्य ), राजभाषा विभाग, बिहार सरकार , पटना।
10. चकल्लस पुरस्कार 1991 ( समग्र व्यंग्य साहित्य ) चकल्लस पुरस्कार ट्रस्ट, 81 सुनीता, कफ परेड, मुंबई ।
11. अट्टहास शिखर सम्मान 1994 ( समग्र व्यंग्य साहित्य ) माध्यम साहित्यिक संस्थान, लखनऊ।
12. शलाका सम्मान 1995-96 ( समग्र साहित्य ) हिंदी अकादमी दिल्ली।
13. साहित्य भूषण -1998 ( समग्र साहित्य ) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।

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मजबूरी और कमजोरी

मैं रामलुभाया के घर पहुँचा तो देख कर चकित रह गया कि वह बोतल खोल कर बैठा हुआ था।

"यह क्या रामलुभाया !'' मैंने कहा, "तुम तो मदिरा के बहुत विरोधी थे।'"

"विरोधी तो अब भी हूँ; किंतु क्या करूं । इस वर्ष भी आचार्य ने मुझे पुरस्कार नहीं दिया।"

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देशभक्त

रामलुभाया बहुत जल्दी में था। मैं उसे पुकारता रहा और वह मुझ से भागता रहा। अंततः मैंने दौड़ कर उस को पकड़ ही लिया।

‘‘क्या बात है रामलुभाया ?’’

‘‘वह अपनी क्रिकेट की टीम आ रही है न। उन का स्वागत करने मैं एयरपोर्ट जा रहा हूँ।’’

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भेजो

"हुजूर! ख़बर आई है कि हमारे लोगों ने भारतीय कश्मीर में पच्चीस हिंदू तो मार ही दिए हैं। ज़्यादा हों तो भी कुछ कहा नहीं जा सकता। उन्होंने दो-दो साल के बच्चे भी मार गिराए हैं।”

मुशर्रफ ने सिर उठा कर समाचारवाहक की ओर देखा। उसकी आंखों में प्रशंसा और चेहरे पर मुस्कान थी। कुछ देर तक अपनी सफलता के हर्षातिरेक से उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला और फिर जैसे उसे दीवानगी का दौरा पड़ गया, "भेजो भाई! भेजो। जल्दी भेजो। ऐसी खबर लेकर आए हो और यहां ऐसे खड़े हो, जैसे एक मामूली फाइल लाए हो।" 

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