अब तो हरि नाम लौ लागी सब जग को यह माखनचोर, नाम धर्यो बैरागी। कहं छोडी वह मोहन मुरली, कहं छोडि सब गोपी।
राम रतन धन पायो पायो जी म्हे तो रामरतन धन पायो। बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा को अपणायो।
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥ बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे। बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
हरि बिन कछू न सुहावै परम सनेही राम की नीति ओलूंरी आवै। राम म्हारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै।
झूठी जगमग जोति आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि। झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
अब तो मेरा राम अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥ माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
म्हारे तो गिरधर गोपाल म्हारे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥ जाके सिर मोर मुगट मेरो पति सोई।
रंग भरी राग भरी रागसूं भरी री। होली खेल्यां स्याम संग रंग सूं भरी, री।। उडत गुलाल लाल बादला रो रंग लाल।
गंगा-जमना निरमळ पाणी सीतल होत सरीर । बंसी बजावत गावत कान्हो संग लियाँ बळ बीर ।। मोर मुगट पीतांबर सोहै कुण्डळ झळकत हीर ।
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय। घायल की गति घायल जाणै जो कोई घायल होय। जौहरि की गति जौहरी जाणै की जिन जौहर होय।
श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया ।। टेर ।। ऐसी वो रंग दे रंग नाई छूटे, धोबनिया धोये चाहे सारी उमरिया।
होरी खेलत हैं गिरधारी। मुरली चंग बजत डफ न्यारो। संग जुबती ब्रजनारी॥
दरद न जाण्यां कोय हेरी म्हां दरदे दिवाणी म्हारां दरद न जाण्यां कोय। घायल री गत घाइल जाण्यां, हिवडो अगण संजोय।
मीरा के भजनों का संग्रह।