धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 8

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एक वाक्य

चेक बुक हो पीली या लाल,
दाम सिक्के हों या शोहरत --
कह दो उनसे

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उपलब्धि

मैं क्या जिया ?
मुझको जीवन ने जिया -
बूँद-बूँद कर पिया, मुझको

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उत्तर नहीं हूँ

उत्तर नहीं हूँ
मैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!
नये-नये शब्दों में तुमने

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अविष्ट

दुख आया
घुट-घुट कर
मन-मन मैं खीज गया

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क्योंकि सपना है अभी भी

...क्योंकि सपना है अभी भी
इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएं

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गुल की बन्नो

‘‘ऐ मर कलमुँहे !' अकस्मात् घेघा बुआ ने कूड़ा फेंकने के लिए दरवाजा खोला और चौतरे पर बैठे मिरवा को गाते हुए देखकर कहा, ‘‘तोरे पेट में फोनोगिराफ उलियान ?...

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उत्तर नहीं हूँ

उत्तर नहीं हूँ
मैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही!
नये-नये शब्दों में तुमने

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पूजा गीत

जिस दिन अपनी हर आस्था तिनके-सी टूटे
जिस दिन अपने अन्तरतम के विश्वास सभी निकले झूठे !
उस दिन

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धर्मवीर भारती | Dhramvir Bharti का जीवन परिचय