राजगोपाल सिंह साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 20

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महानगर पर दोहे

अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोर
रोज़ जगाता है हमें, कान फोड़ता शोर
अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की शाम

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राजगोपाल सिंह | दोहे

बाबुल अब ना होएगी, बहन भाई में जंग
डोर तोड़ अनजान पथ, उड़कर चली पतंग
बाबुल हमसे हो गई, आख़िर कैसी भूल

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मौन ओढ़े हैं सभी | राजगोपाल सिंह का गीत

मौन ओढ़े हैं सभी तैयारियाँ होंगी ज़रूर
राख के नीचे दबी चिंगारियाँ होंगी ज़रूर
आज भी आदम की बेटी हंटरों की ज़द में है

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राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें

राजगोपाल सिंह की ग़ज़लें भी उनके गीतों व दोहों की तरह सराही गई हैं। यहाँ उनकी कुछ ग़ज़लें संकलित की जा रही हैं।
 
गज़ल

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इन चिराग़ों के | ग़ज़ल

इन चिराग़ों के उजालों पे न जाना, पीपल
ये भी अब सीख गए आग लगाना, पीपल
जाने क्यूँ कहता है ये सारा ज़माना, पीपल

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मैं रहूँ या न रहूँ | ग़ज़ल

मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा
शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा
बो रहा हूँ बीज कुछ सम्वेदनाओं के यहाँ

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अजनबी नज़रों से | ग़ज़ल

अजनबी नज़रों से अपने आप को देखा न कर
आइनों का दोष क्या है? आइने तोड़ा न कर
यह भी मुमकिन है ये बौनों का नगर हो इसलिए

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मौज-मस्ती के पल भी आएंगे | ग़ज़ल

मौज-मस्ती के पल भी आएंगे
पेड़ होंगे तो फल भी आएंगे
आज की रात मुझको जी ले तू

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काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ | ग़ज़ल

काग़ज़ी कुछ कश्तियाँ नदियों में तैराते रहे
जब तलक़ ज़िन्दा रहे बचपन को दुलराते रहे
रात कैसे-कैसे ख्याल आते रहे, जाते रहे

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जितने पूजाघर हैं | ग़ज़ल

जितने पूजाघर हैं सबको तोड़िये
आदमी को आदमी से जोड़िये
एक क़तरा भी नहीं है ख़ून का

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मक़सद

उनका मक़सद था
आवाज़ को दबाना
अग्नि को बुझाना

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लूटकर ले जाएंगे | ग़ज़ल

लूटकर ले जाएंगे सब देखते रह जाओगे
पत्थरों की वन्दना करने से तुम क्या पाओगे
मांगने से पहले कुछ भी, सोच लो, फिर मांगना

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बग़ैर बात कोई | ग़ज़ल

बग़ैर बात कोई किसका दुख बँटाता है
वो जानता है मुझे इसलिए रुलाता है
है उसकी उम्र बहुत कम इसलिए शायद

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आजकल हम लोग ... | ग़ज़ल

आजकल हम लोग बच्चों की तरह लड़ने लगे
चाबियों वाले खिलौनों की तरह लड़ने लगे
ठूँठ की तरह अकारण ज़िंदगी जीते रहे

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तू इतना कमज़ोर न हो

तू इतना कमज़ोर न हो
तेरे मन में चोर न हो
जग तुझको पत्थर समझे

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ऐसे कुछ और सवालों को | ग़ज़ल

ऐसे कुछ और सवालों को उछाला जाये
किस तरह शूल को शूलों से निकाला जाये
फिर चिराग़ों को सलीक़े से जलाना होगा

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धरती मैया | ग़ज़ल

धरती मैया जैसी माँ
सच पुरवैया जैसी माँ
 

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हंसों के वंशज | गीत

हंसों के वंशज हैं लेकिन
कव्वों की कर रहे ग़ुलामी
यूँ अनमोल लम्हों की प्रतिदिन

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सीते! मम् श्वास-सरित सीते

सीते! मम् श्वास-सरित सीते
रीता जीवन कैसे बीते
हमसे कैसा ये अनर्थ हुआ

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ज़िंदगी

ज़िंदगी इक ट्रेन है
और ये संसार
भागते हुए चित्रों की

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राजगोपाल सिंह का जीवन परिचय