ले लो दो आने के चार लड्डू राज गिरे के यार यह हैं धरती जैसे गोल
चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में,
मेंहदी से तस्वीर खींच ली किसकी मधुर! हथेली पर । प्राणों की लाली-सी है यह, मिट मत जाय हाथों में रसदान किये यह, छुट मत जाय
सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें, कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें। लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में