महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 11

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जो तुम आ जाते एक बार | कविता

कितनी करूणा कितने संदेश पथ में बिछ जाते बन पराग गाता प्राणों का तार तार अनुराग भरा उन्माद राग आँसू लेते वे पथ पखार जो तुम आ जाते एक बार

हँस उठते पल में आर्द्र नयन धुल जाता होठों से विषाद छा जाता जीवन में बसंत लुट जाता चिर संचित विराग आँखें देतीं सर्वस्व वार जो तुम आ जाते एक बार   &n...

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अधिकार | कविता

वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुर्झाना,वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना।
वे नीलम के मेघ, नहीं जिनको है घुल जाने की चाह,वह अनन्त रितुराज, नहीं जिसने देखी जाने की राह।
वे सूने से नयन, नहीं जिनमें बनते आँसू मोती,वह प्राणों की सेज, नहींजिसमें बेसुध पीड़ा सोती।
ऐसा तेरा लोक, वेदना ...

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मैं नीर भरी दुःख की बदली | कविता

मैं नीर भरी दुःख की बदली,स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,क्रंदन में आहत विश्व हँसा,नयनो में दीपक से जलते,पलकों में निर्झनी मचली !मैं नीर भरी दुःख की बदली !
मेरा पग पग संगीत भरा,श्वांसों में स्वप्न पराग झरा,नभ के नव रंग बुनते दुकूल,छाया में मलय बयार पली !मैं नीर भरी दुःख की बदली !
मैं क्षितिज भृकुटी ...

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बिंदा

भीत-सी आंखों वाली उस दुर्बल, छोटी और अपने-आप ही सिमटी-सी बालिका पर दृष्टि डाल कर मैंने सामने बैठे सज्जन को, उनका भरा हुआ प्रवेशपत्र लौटाते हुए कहा- 'आपने आयु ठीक नहीं भरी है। ठीक कर दीजिए, नहीं तो पीछे कठिनाई पड़ेगी।'   'नहीं, यह तो गत आषाढ़ में चौदह की हो चुकी'  सुनकर मैंने कुछ वि...

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चीनी भाई

मुझे चीनियों में पहचान कर स्मरण रखने योग्य विभिन्नता कम मिलती है। कुछ समतल मुख एक ही साँचे में ढले से जान पड़ते हैं और उनकी एकरसता दूर करने वाली, वस्त्र पर पड़ी हुई सिकुड़न जैसी नाक की गठन में भी विशेष अंतर नहीं दिखाई देता। कुछ तिरछी अधखुली और विरल भूरी वरूनियों वाली आँखों की तरल रेखाकृति दे...

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गिल्लू

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है।
परंतु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी हो...

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बया | बाल-कविता

बया हमारी चिड़िया रानी।
तिनके लाकर महल बनाती,ऊँची डालों पर लटकाती,खेतों से फिर दाना लातीनदियों से भर लाती पानी।
तुझको दूर न जाने देंगे,दानों से आँगन भर देंगे,और हौज में भर देंगे हममीठा-मीठा पानी।
फिर अंडे सेयेगी तू जब,निकलेंगे नन्हें बच्चे तबहम आकर बारी-बारी सेकर लेंगे उनकी निगरानी।
फिर जब उन...

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श्री सूर्यकांतजी त्रिपाठी 'निराला'

एक युग बीत जाने पर भी मेरी स्मृति से एक घटाभरी अश्रुमुखी सावनी पूर्णिमा की रेखाएँ नहीं मिट सकी है। उन रेखाओं के उजले रंग न जाने किस व्यथा से गीले हैं कि अब तक सूख भी नहीं पाए - उड़ना तो दूर की बात है।
उस दिन मैं बिना कुछ सोचे हुए ही भाई निराला जी से पूछ बैठी थी, "आप के किसी ने राखी नहीं बाँधी?" ...

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प्रेमचंदजी

प्रेमचंदजी से मेरा प्रथम परिचय पत्र के द्वारा हुआ। तब मैं आठवीं कक्षा की विद्यार्थिनी थी!। मेरी 'दीपक' शीर्षक एक कविता सम्भवत: 'चांद' में प्रकाशित हुई। प्रेमचंदजी ने तुरन्त ही मुझे कुछ पंक्तियों में अपना आशीर्वाद भेजा। तब मुझे यह ज्ञात नहीं था कि कहानी और उपन्यास लिखने वाले कविता भी पढ़ते हैं। मे...

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मधुर-मधुर मेरे दीपक जल

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!युग-युग, प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपलप्रियतम का पथ आलोकित कर।
सौरभ फैला विपुल धूप बनमृदुल मोम-सा धुल रे मृदुतन।दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,तेरे जीवन का अणु-अणु गल।पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
सारे शीतल कोमल नूतन,माँग रहे मुझसे ज्वाला कण,विश्व-शलभ सिर धुन कहता 'मैंहाय! न जल पाया...

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सब बुझे दीपक जला लूं

सब बुझे दीपक जला लूंघिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं!
क्षितिज कारा तोडकर अबगा उठी उन्मत आंधी,अब घटाओं में न रुकतीलास तन्मय तडित बांधी,धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
भीत तारक मूंदते द्रगभ्रान्त मारुत पथ न पाता,छोड उल्का अंक नभ मेंध्वंस आता हरहराताउंगलियों की ओट में सुकुमार सब सप...

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महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma का जीवन परिचय