वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुर्झाना,वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना।
वे नीलम के मेघ, नहीं जिनको है घुल जाने की चाह,वह अनन्त रितुराज, नहीं जिसने देखी जाने की राह।
वे सूने से नयन, नहीं जिनमें बनते आँसू मोती,वह प्राणों की सेज, नहींजिसमें बेसुध पीड़ा सोती।
ऐसा तेरा लोक, वेदना ...
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