कौरव कौन कौन पांडव, टेढ़ा सवाल है।
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते। सत्य का संघर्ष सत्ता से, न्याय लड़ता निरंकुशता से,
कवि आज सुना वह गान रे, जिससे खुल जाएँ अलस पलक। नस-नस में जीवन झंकृत हो,
झुकी न अलकें झपी न पलकें सुधियों की बारात खो गई
आओ फिर से दिया जलाएं भरी दूपहरी में अधियारा सूरज परछाई से हारा
एक बरस बीत गया झुलसाता जेठ मास शरद चाँदनी उदास
जो कल थे, वे आज नहीं हैं। जो आज हैं,
पंद्रह अगस्त का दिन कहता - आज़ादी अभी अधूरी है। सपने सच होने बाकी है,
गूंजी हिन्दी विश्व में स्वप्न हुआ साकार, राष्ट्रसंघ के मंच से हिन्दी का जैकार। हिन्दी का जैकार हिन्द हिन्दी में बोला,
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं, टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ ।
ऊँचे पहाड़ पर, पेड़ नहीं लगते, पौधे नहीं उगते,
खून क्यों सफेद हो गया? भेद में अभेद खो गया। बंट गये शहीद, गीत कट गए,
बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे,
पेड़ के ऊपर चढ़ा आदमी ऊंचा दिखाई देता है। जड़ में खड़ा आदमी
गूंजी हिन्दी विश्व में, स्वप्न हुआ साकार; राष्ट्र संघ के मंच से, हिन्दी का जयकार; हिन्दी का जयकार, हिन्द हिन्दी में बोला;