जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का घूँघट खोल दिया दो बोल सुने ये फूलों ने मौसम का घूँघट खोल दिया बुलबुल ने छेड़ा हर दिल को, फूलों ने छेड़ा आँखों को
घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो, आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
उन्तीस वसन्त जवानी के, बचपन की आँखों में बीते झर रहे नयन के निर्झर, पर जीवन घट रीते के रीते बचपन में जिसको देखा था
राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम मेरा धन है स्वाधीन कलम जिसने तलवार शिवा को दी
बरस-बरस पर आती होली, रंगों का त्यौहार अनूठा चुनरी इधर, उधर पिचकारी,
दो वर्तमान का सत्य सरल, सुंदर भविष्य के सपने दो हिंदी है भारत की बोली