गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 6

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जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने | गीत

जब दर्द बढ़ा तो बुलबुल ने, सरगम का घूँघट खोल दिया 
दो बोल सुने ये फूलों ने मौसम का घूँघट खोल दिया 
बुलबुल ने छेड़ा हर दिल को, फूलों ने छेड़ा आँखों को 

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स्वतंत्रता का दीपक

घोर अंधकार हो,
चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।

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कवि की बरसगाँठ

उन्तीस वसन्त जवानी के, बचपन की आँखों में बीते
झर रहे नयन के निर्झर, पर जीवन घट रीते के रीते
          बचपन में जिसको देखा था

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मेरा धन है स्वाधीन कलम

राजा बैठे सिंहासन पर, यह ताजों पर आसीन कलम
मेरा धन है स्वाधीन कलम
जिसने तलवार शिवा को दी

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बरस-बरस पर आती होली

बरस-बरस पर आती होली,
रंगों का त्यौहार अनूठा
चुनरी इधर, उधर पिचकारी,

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हिंदी है भारत की बोली | कविता

दो वर्तमान का सत्‍य सरल,
सुंदर भविष्‍य के सपने दो
हिंदी है भारत की बोली

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गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali का जीवन परिचय