सो गई है मनुजता की संवेदनागीत के रूप में भैरवी गाइएगा न पाओ अगर जागरण के लिएकारवाँ छोड़कर अपने घर जाइए
झूठ की चाशनी में पगी जिन्दगीआजकल स्वाद में कुछ खटाने लगीसत्य सुनने की आदी नहीं है हवाकह दिया, इसलिए लड़खड़ाने लगीसत्य ऐसा कहो, जो न हो निर्वसनउसको शब्दों का परिधान पहनाइए काव्य की कुलवधू हाशिए...
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