रामप्रसाद बिस्मिल साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 11

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जननी जन्मभूमि

हाय! जननी जन्मभूमि छोड़कर जाते हैं हम, 
देखना है फिर यहाँ कब लौट कर आते हैं हम। 
स्वर्ग के सुख से भी ज्यादा सुख मिला हम को यहाँ, 

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निज जीवन की एक छटा

शहीद रामप्रसाद 'बिस्मिल' की आत्मकथा के अनेक संस्करण उपलब्ध हैं।  इनमें गणेशशंकर विद्यार्थी की 'प्रताप प्रेस' कानपुर, पं बनारसीदास चतुर्वेदी द्वारा सम?...

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रामप्रसाद 'बिस्मिल' ने कहा था | अमर वचन

यदि किसी के मन में जोश, उमंग या उत्तेजना पैदा हो तो शीघ्र गावों में जाकर कृषकों की दशा सुधारें।
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किसी को घृणा तथा उपेक्षा की दृष्टि से न देखा जाये, किन्तु स?...

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राम प्रसाद बिस्मिल का अंतिम पत्र

शहीद होने से एक दिन पूर्व रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने एक मित्र को निम्न पत्र लिखा -
"19 तारीख को जो कुछ होगा मैं उसके लिए सहर्ष तैयार हूँ।
आत्मा अमर है जो मनुष्...

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ऐ मातृभूमि

ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो, सदा विजय हो।
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कातिमय हो॥
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,

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हे मातृभूमि

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ॥
माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला,

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तुझ बिन कोई हमारा

तुझ बिन कोई हमारा, रक्षक नही यहाँ पर;
ढूँढा जहान सारा, तुम सा नही रखैया॥
दुनिया में खूब देखा, आँखे पसार करके

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यदि देश के हित मरना पड़े

यदि देश के हित मरना पड़े, मुझको सहस्त्रों बार भी,
तो भी न मैं इस कष्ट को, निज ध्यान में लाऊं कभी।
हे ईश! भारतवर्ष में, शत बार मेरा जन्म हो,

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देश की ख़ातिर

देश की ख़ातिर मेरी दुनिया में यह ताबीर हो।
हाथ में हो हथकड़ी, पैरों पड़ी जंज़ीर हो॥
शूली मिले फाँसी मिले या कोई भी तदबीर हो।

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प्रार्थना

दुख दूर कर हमारे, संसार के रचैया!
जल्दी से दे सहारा, मंझदार में है नैया॥
तुझ बिन कोई हमारा, रक्षक नही यहाँ पर;

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दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर।
हम को भी पाला था माँ-बाप ने दुख सह सह कर।
वक़्त-ए-रुख़्सत उन्हें इतना भी न आए कह कर।

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रामप्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय