डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 7

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शस्य श्यामलां

एक पत्थर फेंका गया मेरे घर मेंफ़ेंकना चाहती थी मैं भी उसे किसी शीश महल मेंपर आ किसी ने हाथ रोक लिएमंदिर में सजा दिया उसेअब हो व्याकुलकहीं नमी देखते हीबो देना चाहती हूँआस्था विश्वास के बीजलहलहा उठे फसलेंहृदय हो उठे फिर शस्य श्यामलां
-सुनीता शर्मा ऑकलैंड, न्यूज़ीलैंड ई-मेल: adorab...

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जवाब

दोहराता रहेगा इतिहास भी युगों-युगों तक यह दुर्योधन - दुशासन की कुटिल राजनीति की बिसात पर खेली गयी द्रौपदी चीर-हरण जैसी प्रवासी मजदूरों कीअनोखी कहानी, जब पूरी सभा रही मौन और मानवता - सिसकती व कराहती हुई दम तोड़ती रही थी...इन प्रश्नों का जवाब एक दिन ये पीढ़ी तुमसे अवश्य मांगेगी...मांगेगी अवश्य।
-ड...

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मेरा दिल मोम सा | कविता

खिड़की दरवाजे लोहे के बनाबोल्ट कर लिए हैं मैंनेकोई कण धूल-सा आंखों मेंना चुभ जाए कहींlमेरा दिल मोम सापिघल न जाए कहींlबिस्तर पर भी चप्पलउतारने से कतराती हूँ मैंकोई फूल कांटा बनकरना चुभ जाए कहींlमेरा दिल मोम सापिघल ना जाए कहींlअंगुलियों में भी सुई लेकरकपड़े सिलने से घबराती हूँ मैंकोई याद जख्म बनना ...

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बस...या ख़ुदा | कविता

बेच रहे थे वह पानी हवा और ज़मीन,तब उसे लगता थाहै मुश्किल खरीदनीही ज़मीन।
उसे कहाँ था मालूमकि कभी डर के कारोबार मौत के बाजार में,नियम यूँ बदलेंगे हवा बाज़ारों में बिकेगी रूपये - पैसे से भी, जिसकी किश्त नचुक पाएगी।
सांसे होंगी बाकी पर हवा नहीं,नहीं.. कहीं...नहीं..और एक दिनअपने ही छूट जाएंगेअपनों ...

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सुनीता शर्मा के हाइकु

भाव ही भाव आजकल आ-भा-व है कहीं कहां
नजरों से यूँ होता कत्ले आमअब आम है
हरसिंगारसे चेहरे मेरे मोतीउसके फूल
नेता तेरे ही नाम -चोरी- घोटालाभ्रष्टाचार
चांदनी रातनिस्तब्ध- सोए -ओढे मौत - कफन
बादल कहेंकहानी कहीं सूखा तो कहीं पानी
खारे जल काक्या मोल फैला क्योंयूं चारों ओर
यू पंगु बनटीवी से जा चिप...

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प्रवासी भारतीय तू... | कविता

प्रवासी भारतीय तूअपनी पैतृक जड़ों से यूं जुड़ तूभेड़ बकरी की तरहमत कर अंधानुकरण यूँ..अदम्य साहस, समर्पण, धैर्य सेलिख अपनी नई दास्तां तू..प्रवासी भारतीय तू...
किसी भौगोलिक सीमा मेंन बंध यूँनई चेतना, नई प्रेरणा, नया संकल्पले अब तू...नव निर्माण नव प्रकाश काध्वजा वाहक बन तू...प्रवासी भारतीय तू...
ल...

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दीवानी सी | कविता

एक औरत जो दफन बरसों से उसने न जाने कैसे सांसों के आरोह-अवरोह में कहीं सपने चुनने-बुनने आरंभ कर दिए...!
यूँ तो प्रकृति कहीं मरुस्थल-सी.. पर स्वेद-जल-समुद्र-से पाकर प्रेम-ऊष्मा-ताप यूँ ही .. बरसी-रिमझिम-पगलाई-सी..
भीगी कमली-सी फ़िर ओढ़ तितली पंख-छतरी नाची यूँ दीवानी-दीवानी सी..!
-डॉ॰ सुनीता शर्म...

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डॉ सुनीता शर्मा | न्यूज़ीलैंड का जीवन परिचय