द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी साहित्य Hindi Literature Collections

कुल रचनाएँ: 6

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एक हमारी धरती सबकी

एक हमारी धरती सबकी
जिसकी मिट्टी में जन्मे हम
मिली एक ही धूप हमें है

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वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं

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उठो धरा के अमर सपूतो

उठो धरा के अमर सपूतो
पुनः नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से

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मूलमंत्र

केवल मन के चाहे से ही
मनचाही होती नहीं किसी की।
बिना चले कब कहाँ हुई है

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सत्य की जीत

"अरे ओ दुर्योधन निर्लज्ज!
अभी भी यों बढ़-बढ़कर बात।
बाल बाँका कर पाया नहीं

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मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी

मुन्नी-मुन्नी ओढ़े चुन्नी
गुड़िया खूब सजाई।
किस गुड्डे के साथ हुई तय

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द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी का जीवन परिचय