बुढ़िया चला रही थी चक्की पूरे साठ वर्ष की पक्की। दोने में थी रखी मिठाई
मैं बरामदे में टहल रहा था। इतने में मैंने देखा कि विमला दासी अपने आंचल के नीचे एक प्रदीप लेकर बड़ी भाभी के कमरे की ओर जा रही है। मैंने पूछा, 'क्यों री! यह क्य...
कहो तो यह कैसी है रीति? तुम विश्वम्भर हो, ऐसी, तो होतो नहीं प्रतीति॥
चन्द्र हरता है निशा की कालिमा, हृदय की देता