मेरी भवबाधा हरो, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे, स्याम हरित दुति होय॥
सरलार्थ : मेरी सांसारिक बाधा को, जन्म-मरण की आपदाओं को, वे राधा नागरी दूर करें, जिनके शरीर की (पीत) छाहं पड़ने से श्यामसुन्दर की द्युति हरी हो जाती है।
मोर मुकुट कटि काछनी, कर मुरली उर माल। यहि बानिक ...
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