वृन्दावन गया था। बाँके बिहारी के दर्शन करने के पश्चात् मन में आया कि यमुना के पवित्र जल में भी डुबकी लगाता चलूँ। पवित्र नदियों में स्नान करने का अवसर रोज-रोज थोड़े ही मिलता है।
...
कथा-कहानियाँ
इस श्रेणी के अंतर्गत
चुनौती | लघुकथा
इनाम | कहानी
हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया।
बेचारे का गला सूज आया। न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था। तकलीफ के मारे छटपटा रहा था। भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधऱ। न चैन था, न आराम था। इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़कर निगल रहा था।
भेड़िया सारस के नजदीक आया। आँखों में आँसू भरकर और गिड़गिड़ाकर उसने कहा-''भइया, बड़ी मुसीबत में फँस गया हूँ। गले में काँटा अटक गया है, लो तुम उसे निकाल दो और मेरी जान बचाओ। पीछे तुम जो भी माँगोगे, मैं जरूर दूँगा। रहम करो भाई !''
सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी। भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी भेड़िये ने मुंह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट् से काँटा निकाल लिया और बोला-''भाई साहब, अब आप मुझे इनाम दीजिए !''
सारस की यह बात सुनते ही भेड़िये की आँखें लाल हो आई, नाराजी के मारे वह उठकर खड़ा हो गया। सारस की ओर मुंह बढ़ाकर भेडिया दाँत पीसने लगा और बोला-''इनाम चाहिए ! जा भाग, जान बची तो लाखों पाये ! भेड़िये के मुँह में अपना सिर डालकर फिर तू उसे सही-सलामत निकाल ले सका, यह कोई मामूली इनाम नहीं है। बेटा ! टें टें मत कर ! भाग जा नहीं तो कचूमर निकाल दूँगा।''
सारस डर के मारे थर-थर काँपने लगा। भेड़िये को अब वह क्या जवाब दे, कुछ सूझ ही नहीं रहा था। गरीब मन-ही-मन गुनगुना उठा-
...
फ़र्क | लघुकथा
उस दिन उसके मन में इच्छा हुई कि भारत और पाक के बीच की सीमारेखा को देखा जाए, जो कभी एक देश था, वह अब दो होकर कैसा लगता है? दो थे तो दोनों एक-दूसरे के प्रति शंकालु थे। दोनों ओर पहरा था। बीच में कुछ भूमि होती है जिस पर किसी का अधिकार नहीं होता। दोनों उस पर खड़े हो सकते हैं। वह वहीं खड़ा था, लेकिन अकेला नहीं था-पत्नी थी और थे अठारह सशस्त्र सैनिक और उनका कमाण्डर भी। दूसरे देश के सैनिकों के सामने वे उसे अकेला कैसे छोड़ सकते थे! इतना ही नहीं, कमाण्डर ने उसके कान में कहा, "उधर के सैनिक आपको चाय के लिए बुला सकते हैं, जाइएगा नहीं। पता नहीं क्या हो जाए? आपकी पत्नी साथ में है और फिर कल हमने उनके छह तस्कर मार डाले थे।"
...
ठेका | कहानी

धीरे-धीरे कहकहों का शोर शांत हो चला और मेहमान एक-एक करके विदा होने लगे। लकदक करती ठेकेदारों की फैशनेबल बीवियाँ और अपने को अब भी जवान माननेवाली छोटे अफसरों की अधेड़ घरवालियाँ, सभी ही-ही करती चमकती, इठलाती चली गई, लेकिन रोशनलाल की पत्नी तब तक आई भी नहीं। वह कई बार बीच में से उठकर होटल के बाहर गया। खाते-पीते, बातें करते, उसकी दृष्टि बराबर द्वार की ओर लगी रही, पर संतोष उसे नहीं दिखाई दी, नहीं दिखाई दी। यह बात नहीं कि संतोष को इस पार्टी का पता नहीं था, इसके विपरीत उसने रोशनलाल को कई बार इस पार्टी की याद दिलाई थी। आज सवेरे उससे विशेष रूप से कहा था, 'राजकिशोर शाम को वेंगर में पार्टी दे रहे हैं। भूलिएगा नहीं।"
...
आहुति | लघुकथा
अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पिया और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया।
...