Important Links
गीत |
गीतों में प्राय: श्रृंगार-रस, वीर-रस व करुण-रस की प्रधानता देखने को मिलती है। इन्हीं रसों को आधारमूल रखते हुए अधिकतर गीतों ने अपनी भाव-भूमि का चयन किया है। गीत अभिव्यक्ति के लिए विशेष मायने रखते हैं जिसे समझने के लिए स्वर्गीय पं नरेन्द्र शर्मा के शब्द उचित होंगे, "गद्य जब असमर्थ हो जाता है तो कविता जन्म लेती है। कविता जब असमर्थ हो जाती है तो गीत जन्म लेता है।" आइए, विभिन्न रसों में पिरोए हुए गीतों का मिलके आनंद लें। |
Articles Under this Category |
गरमागरम थपेड़े लू के - आनन्द विश्वास (Anand Vishvas) |
गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है, |
more... |
बढ़े चलो! बढ़े चलो! - सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi |
न हाथ एक शस्त्र हो |
more... |
हम आज भी तुम्हारे... - भारत भूषण |
हम आज भी तुम्हारे तुम आज भी पराये, |
more... |
न इतने पास आ जाना .. - भारत भूषण |
न इतने पास आ जाना मिलन भी भार हो जाये, |
more... |