न हाथ एक शस्त्र हो न हाथ एक अस्त्र हो, न अन्न, नीर, वस्त्र हो, हटो नहीं, डटो वहीं, बढ़े चलो! बढ़े चलो!
रहे समक्ष हिमशिखर, तुम्हारा प्रण उठे निखर, भले ही जाए तन बिखर, रुको नहीं, झुको नहीं बढ़े चलो! बढ़े चलो!
घटा घिरी अटूट हो, अधर में कालकूट हो, वही अम्रत का घूँट हो, जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो! बढ़े चलो!
गगन उगलता आग हो, छिड़ा मरण का राग हो, लहू का अपने फाग हो, अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो! बढ़े चलो!
चलो नई मिसाल हो, जलो नई मशाल हो, बढ़ो नया क़माल हो, झुको नहीं, रुको नहीं बढ़े चलो! बढ़े चलो!
अशेष रक्त तोल दो, स्वतन्त्रता का मोल दो, कड़ी युगों की खोल दो, डरो नहीं, मरो वहीं, बढ़े चलो! बढ़े चलो!
- सोहनलाल द्विवेदी |