राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। - महात्मा गाँधी।

 
कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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अच्छा कौन -  चितरंजन 'भारती'

एक ट्रेन में चार यात्री यात्रा कर रहे थे । उनमें एक बंगाली, एक तमिल, एक एंग्लो-इंडियन तथा एक हिंदी भाषी था । वे लोग अपनी- अपनी भाषा पर बात कर रहे थे ।
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बिल और दाना - रांगेय राघव

एक बार एक खेत में दो चींटियां घूम रही थीं। एक ने कहा, 'बहन, सत्य क्या है ?' दूसरी ने कहा ‘सत्य? बिल और दाना !'
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इनाम - नागार्जुन | Nagarjuna

हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक काँटा अटक गया।

बेचारे का गला सूज आया। न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था। तकलीफ के मारे छटपटा रहा था। भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधऱ। न चैन था, न आराम था। इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़कर निगल रहा था।

भेड़िया सारस के नजदीक आया। आँखों में आँसू भरकर और गिड़गिड़ाकर उसने कहा-''भइया, बड़ी मुसीबत में फँस गया हूँ। गले में काँटा अटक गया है, लो तुम उसे निकाल दो और मेरी जान बचाओ। पीछे तुम जो भी माँगोगे, मैं जरूर दूँगा। रहम करो भाई !''

सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी। भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी भेड़िये ने मुंह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट् से काँटा निकाल लिया और बोला-''भाई साहब, अब आप मुझे इनाम दीजिए !''

सारस की यह बात सुनते ही भेड़िये की आँखें लाल हो आई, नाराजी के मारे वह उठकर खड़ा हो गया। सारस की ओर मुंह बढ़ाकर भेडिया दाँत पीसने लगा और बोला-''इनाम चाहिए ! जा भाग, जान बची तो लाखों पाये ! भेड़िये के मुँह में अपना सिर डालकर फिर तू उसे सही-सलामत निकाल ले सका, यह कोई मामूली इनाम नहीं है। बेटा ! टें टें मत कर ! भाग जा नहीं तो कचूमर निकाल दूँगा।''

सारस डर के मारे थर-थर काँपने लगा। भेड़िये को अब वह क्या जवाब दे, कुछ सूझ ही नहीं रहा था। गरीब मन-ही-मन गुनगुना उठा-
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कप्तान - शिवरानी देवी प्रेमचंद

ज़ोरावर सिंह की जिस दिन शादी हुई, बहू आई, उसी रोज़ ज़ोरावर सिंह की कप्तानी को जगह मिली। घर में आकर बोला ज़ोरावर अपनी बीवी से -- 'तुम बड़ी भाग्यवान हो। कल तुम आई नहीं, आज मैं कप्तान बन बैठा ।'
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तत्सत् - जैनेन्द्र कुमार | Jainendra

एक गहन वन में दो शिकारी पहुँचे। वे पुराने शिकारी थे। शिकार की टोह में दूर-दूर घूम रहे थे, लेकिन ऐसा घना जंगल उन्हें नहीं मिला था। देखते ही जी में दहशत होती थी। वहाँ एक बड़े पेड़ की छाँह में उन्होंने वास किया और आपस में बातें करने लगे।
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वापसी - उषा प्रियंवदा - उषा प्रियंवदा | Usha Priyamvada

गजाधर बाबू ने कमरे में जमा सामान पर एक नज़र दौड़ाई - दो बक्स, डोलची, बाल्टी। ''यह डिब्बा कैसा है, गनेशी?'' उन्होंने पूछा। गनेशी बिस्तर बाँधता हुआ, कुछ गर्व, कुछ दु:ख, कुछ लज्जा से बोला, ''घरवाली ने साथ में कुछ बेसन के लड्डू रख दिए हैं। कहा, बाबूजी को पसन्द थे, अब कहाँ हम गरीब लोग आपकी कुछ खातिर कर पाएँगे।'' घर जाने की खुशी में भी गजाधर बाबू ने एक विषाद का अनुभव किया जैसे एक परिचित, स्नेह, आदरमय, सहज संसार से उनका नाता टूट रहा था।
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सुधार - हरिशंकर परसाई | Harishankar Parsai

एक जनहित की संस्‍था में कुछ सदस्‍यों ने आवाज उठाई, 'संस्‍था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्‍था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग कर देना चाहिए।
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जीवन-रेखा - डॉ रामनिवास मानव | Dr Ramniwas Manav

छुट्टियाँ बिताकर, चलते समय उसने, बैठक की ड्योढ़ी पर गुमसुम बैठे काका के चरण छुए, तो काका ने, आशीर्वाद के लिए अपना हाथ, उसके सिर पर रख दिया-“आच्छ्यो बेट्टा ! हुंस्यारी सीं जइए। मैं तो इब तुन्नै जाता नै बी ना देख सकूँ, आँख फूटगी।”
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प्रभाव - नरेन्द्र कोहली

एक व्‍यक्ति बहुत श्रद्धापूर्वक नित्‍यप्रति भगवद्गीता पढ़ा करता था। उसके पोते ने अपने दादा के आचरण को देख कर निर्णय किया कि वह भी प्रतिदिन गीता पढ़ेगा। काफी समय तक धैर्यपूर्वक गीता पढ़ने के पश्‍चात् एक दिन वह एक शिकायत लेकर अपने दादा के पास आया। बोला, ''मैं प्रतिदिन गीता पढ़ता हूं; किंतु न तो मुझे कुछ समझ में आता है और न ही उसमें से मुझे कुछ स्‍मरण रहता है। तो फिर गीता पढ़ने का क्‍या लाभ ?''
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सांप-सीढ़ी - दिव्या माथुर

सिनेमाघर के घुप्प अंधेरे में भी राहुल की आंखें बरबस खन्ना-अंकल के उस हाथ पर थीं जो उसकी मम्मी के कंधों और कमर पर बार-बार बहक रहा था। मम्मी के अनुसार खन्ना-अंकल ने यह फिल्म इसलिए चुनी थी कि चार्ली- चैपलिन राहुल का चहेता कमीडियन था।
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अजगर | लोक-कथा - शंकर

बहुत वर्ष पहले एक राजा की दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी शोभा बहुत अच्छे स्वभाव की दयावान स्त्री थी। छोटी रानी रूपा बड़ी कठोर और दुष्ट थी। बड़ी रानी शोभा के एक पुत्री थी, नाम था देवी। रानी रूपा के भी एक बेटी थी, नाम था तारा।
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पागल - रोहित कुमार 'हैप्पी' | न्यूज़ीलैंड

शहर में सब जानते थे कि वो पागल है। जब-तब भाषण देने लगता, किसी पुलिस वाले को देख लेता तो कहने लगता, 'ये ख़ाकी वर्दी में लुटेरे हैं। ये रक्षक नहीं भक्षक हैं। गरीब जनता को लूटते हैं। सरकार ने इन्हें लूटने का लाइसेंस दे रखा है। ये लुटेरे पकड़ेंगे, चोर पकड़ेंगे...., ये तो खुद चोर हैं, लुटेरे हैं ये!
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जन्मभूमि  - देवेन्द्र सत्यार्थी

गाड़ी हरबंसपुरा के स्टेशन पर खड़ी थी। इसे यहाँ रुके पचास घंटे से ऊपर हो चुके थे। पानी का भाव पाँच रुपये गिलास से एकदम पचास रुपये गिलास तक चढ गया और पचास रुपये हिसाब से पानी खरीदते समय लोगों को बडी नरमी से बात करनी पडती थी । वे डरते थे कि पानी का भाव और न चढ जाएे । कुछ लोग अपने दिल को तसल्ली दे रहे थे कि जो इधर हिन्दुओं पर बीत रही है वही उधर मुसलमानों पर भी बीत रही होगी, उन्हें पानी इससे सस्ते भाव पर नहीं मिल रहा होगा, उन्हें भी नानी याद आ रही होगी।
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परिंदा - सुनीता त्यागी

आँगन में  इधर-उधर फुदकती हुई गौरैया अपने बच्चे को उड़ना सिखा रही थी। बच्चा कभी फुदक कर खूंटी पर बैठ जाता तो कभी खड़ी हुई चारपायी पर, और कभी गिरकर किसी सामान के पीछे चला जाता। 
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चल, भाग यहाँ से - दिलीप कुमार

“चल, भाग यहां से...जैसे ही उसने सुना, वो अपनी जगह से थोड़ी दूर खिसक गयी। वहीं से उसने इस बात पर गौर किया कि भंडारा खत्म हो चुका था। बचा-खुचा सामान भंडार गृह में रखा जा चुका था। जूठा और छोड़ा हुआ भोजन कुत्तों और गायों को दिया जा चुका था यानी भोजन मिलने की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो चुकी थी।
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अन्तर दो यात्राओं का  - विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

अचानक देखता हूँ कि मेरी एक्सप्रेस गाड़ी जहाँ नहीं रुकनी थी वहाँ रुक गयी है। उधर से आने वाली मेल देर से चल रही है। उसे जाने देना होगा। कुछ ही देर बाद वह गाड़ी धड़ाधड़ दौड़ती हुई आयी और निकलती चली गयी लेकिन उसी अवधि में प्लेटफार्म के उस ओर आतंक और हताशा का सम्मिलित स्वर उठा। कुछ लोग इधर-उधर भागे फिर कोई बच्चा बिलख-बिलख कर रोने लगा।
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लौटना - सुशांत सुप्रिय की कहानी - सुशांत सुप्रिय

समुद्र का रंग आकाश जैसा था । वह पानी में तैर रही थी । छप्-छप्, छप्-छप् । उसे तैरना कब आया ? उसने तो तैरना कभी नहीं सीखा । फिर यह क्या जादू था ? लहरें उसे गोद में उठाए हुए थीं । एक लहर उसे दूसरी लहर की गोद में सौंप रही थी । दूसरी लहर उसे तीसरी लहर के हवाले कर रही थी । सामने, पीछे, दाएँ, बाएँ दूर तक फैला समुद्र था । समुद्र-ही समुद्र। एक अंतहीन नीला विस्तार ।

"सिस्टर , रोगी का ब्लड-प्रेशर चेक करो ।" पास ही कहीं से आता हुआ एक भारी स्वर ।

"डाक्टर, पेशेंट का ब्लड-प्रेशर बहुत 'लो' है ।"

"सिस्टर, नब्ज़ जाँचो ।"

"नब्ज़ बेहद धीमी चल रही है, सर ।"

लहरें नेहा को समुद्र की अतल गहराइयों में लिए जा रही हैं । वह लहरों पर सवार हो कर नीचे जाती जा रही है । नीचे, और नीचे । वहाँ जहाँ कोई गोताखोर पहले कभी नहीं जा पाया । कमाल की बात यह है कि उसके पास कोई अॉक्सीजन -सिलिंडर नहीं है । नीचे समुद्र का तल सूरज-सा चमक रहा है । उसे अपने पास बुला रहा है । उसे आग़ोश में लेना चाह रहा है । आह ! समुद्र का जल कितना साफ़ है । कितना स्वच्छ है । कितना पारदर्शी ।
नर्सें और डॉक्टर आपस में बातें कर रहे हैं ।

"सिस्टर , क्या पेशेंट यूरिन पास कर रही है ?" एक भारी स्वर पूछ रहा है ।

"नहीं , डॉक्टर ।" दूसरा मुलायम स्वर जवाब दे रहा है ।

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मकर संक्रांति - रोहित कुमार 'हैप्पी'

मकर संक्रांति हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार है। यह पर्व पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तब इस संक्रांति को मनाया जाता है।
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लोहड़ी | 13 जनवरी - रोहित कुमार 'हैप्पी'

मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषतः पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। असम में बीहू के रूप में यह त्यौहार मनाने की परंपरा है। इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है।
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