नागरी प्रचार देश उन्नति का द्वार है। - गोपाललाल खत्री।
कुंडलिया
कुंडलिया मात्रिक छंद है। दो दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। आदि में एक दोहा तत्पश्चात् रोला छंद जोड़कर इसमें कुल छह पद होते है। प्रत्येक पद में 24 मात्राएं होती हैं व आदि अंत का पद एक सा मिलता है। पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुंडलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुंडलिया समाप्त भी होती है।

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गिरिधरराय की कुण्डलियाँ - गिरिधर कविराय

साईं समय न चूकिये, यथाशक्ति सन्मान।
को जानै को आइहै, तेरी पौंरि प्रमान॥
तेरी पौंरि प्रमान, समय असमय तकि आवै।
ताको तू मन खोलि, अंकभरि हृदय लगावै॥
कह गिरिधर कबिराय सबै यामें सुधि आई।
शीतल जल फल-फूल समय जनि चूकौ सांई॥
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