"अब तो भाजपा की सरकार आ गई ।"
मैंने उस गुमसुम रिक्शा वाले से संवाद स्थापित किया ।
भाजपा आए या कांग्रेस जाए..
हमें क्या फर्क पड़ता है?
दो जून की कमाने के लिए
हमें तो तिल-तिल मरना पड़ता है ।
मैंने कहा, "तुम खुश नहीं?"
"आप तो खुश होंगे बाबू?
टैक्स कम देना पड़ेगा, शिक्षा भी बेहतर होगी !"
"हाँ!" मैं धीरे से बुदबुदाया ।
"हमें तो सवारी पहले भी दस देती थी, अब भी दस देगी ।
सुने हैं - जहाज का किराया घटा है !
हमें कहाँ जहाज में जाना है?
हमें तो वही सूखी रोटी या भूखे सो जाना है।"
"बस यहीं, रोक दो! कितने हुए, भाई?"
"पंद्रह रुपया, साब।"
"लो! बीस रख लो!"
"नहीं, अपना छुट्टा ले लो बाबू।
मैं भीख नहीं मांगता....
मेहनत की खाता हूँ,
जितनी मेहनत की मिले
उसी से घर चलाता हूँ।"
- रोहित कुमार 'हैप्पी'