कल रात सपने में
बापू से मुलाक़ात हो गई
बातें उनसे चार हो गई
कुछ हमने उनकी सुनी
और कुछ अपनी सुनाई
इसी कहने और सुनने के दौर में
बहुत कुछ उजागर हुआ।
बापू का अपने देशवासियों के प्रति
प्रेम क़ायम है पर
उनका नाम लेकर शालीनता
और सामंजस्य का ढोंग करने वालों के प्रति
कुछ दर्द और क्षोभ भी सुनाई दिया
उनकी आवाज़ में
ऊपर से बहुत कुछ दिखाई दिया है
जो शायद इस धरती पर रह कर
न दिखाई देता।
अपने कुछ निर्णयों पर गर्व महसूस हुआ
साथ अपनी कुछ कमियों का भी अहसास हुआ।
विश्व में दिन पर दिन बढ़ती असहिष्णुता
और हिंसा के प्रति हमारी आँख मूँदने की आदत
याद दिला देती है हमारी मानसिकता
‘आग मेरे घर में थोड़े ही लगी है,
जब यहाँ तक पहुँचेगी तो देख लेंगे’
समझ में नहीं आता कि हम कब समझेंगे
कि जब आग भड़कती है तो
उसके लिए अपना पराया एक हो जाता है
आग की एक ख़ासियत है
वह अपने पराये में भेद नहीं रखती।
बापू की दुखी आत्मा देखकर लगा कि
उनका शांति का गीत लिखना अभी जारी है
हाँ यह बात और है कि उस गीत के बोल
बदलते जा रहे हैं!
अपनी जन्मभूमि पर उनका गर्व स्पष्ट था
भारत का बदलता रूप
और विश्व मंच पर उसकी भूमिका
का तो बापू ने कभी सपना भी नहीं देखा था
पर अपनी मातृभूमि के बढ़ते प्रभाव
से आत्मा को शांति मिली।
ख़ुशी हुई यह जानकर कि
बापू की नज़र से अभी भी कुछ छुपा नहीं है।
हमारी कमियाँ भी और हमारी उपलब्धियाँ भी!
-डॉ पुष्पा भारद्वाज वुड