संज्ञाएँ और विशेषण- यह बात तो प्रायः सभी लोग जानते होंगे कि कुछ विशेषण कभी कभी संज्ञाओं के समान भी प्रयुक्त होते हैं। जैसे--'बड़े-बड़े यह मानते हैं।' 'अच्छे-अच्छे यह काम नहीं कर सकते।' इन वाक्यों में 'बड़े-बड़े' और 'अच्छे-अच्छे' वस्तुतः विशेषण होने पर भी यहाँ संज्ञाओं के समान प्रयुक्त हुए हैं। पर यह बात कदाचित् कम लोग जानते होंगे कि कुछ संज्ञाएँ भी कुछ अवसरों पर विशेषणों के समान प्रयुक्त होती हैं। जैसे- 'अँगरेजी प्रयोग" या "हिन्दू सभ्यता" सरीखे प्रयोगों में 'अँगरेजी' और 'हिन्दू' वस्तुतः संज्ञा होने पर भी विशेषण का ही काम देते हैं। विशेषण का काम है-- किसी संज्ञा की विशेषता बतला कर उसे उसी तरह की और चीजों से अलग करना; अर्थात उसकी व्याप्ति मर्यादित और निश्चित कर देना। और उक्त पदों में 'अँगरेजी' तथा 'हिन्दू' शब्द यही काम करते हैं। परन्तु इस प्रकार के प्रयोगों का क्षेत्र बहुत कुछ परिमित और सीमित है। हम हर जगह हर विशेषण का संज्ञा के समान अथवा संज्ञा का विशेषण के समान प्रयोग नहीं कर सकते । यदि ऐसा करने जगें तो भाषा की सारी मर्यादा ही नष्ट हो जाएगी ।
फिर भी हम देखते हैं कि बहुत से लोग जल्दी या अज्ञान के कारण ऐसे अवसरों पर संज्ञाओं का प्रयोग कर जाते हैं, जहाँ वस्तुतः विशेषणों का प्रयोग होना चाहिए, और ऐसे अवसरों पर विशेषणों का प्रयोग कर जाते हैं, जहाँ संज्ञाएं आनी चाहिए। इस प्रकार के कुछ उदाहरण 'अच्छी हिन्दी' (पुस्तक) में दिये गये हैं। इधर इसी प्रकार के कुछ प्रयोग हमारे देखने में आये हैं, जिनकी चर्चा आवश्यक जान पड़ती है। आशा है, ये पंक्तियाँ पढ़ने वाले लोग इस प्रकार की भूलों से बचने का प्रयत्न करेंगे ।
हिन्दी में कभी-कभी जिन संज्ञाओं का प्रयोग विशेषण के समान किया जाता है, उनमें सबसे प्रसिद्ध और प्रचलित संज्ञा 'स्वीकार' है। वस्तुतः 'स्वीकार' और 'स्वीकरण' बिलकुल एक-से और एक ही अर्थ वाले शब्द हैं। हम जहाँ स्वीकार का प्रयोग कर सकते हैं, वहाँ स्वीकरण का भी प्रयोग कर सकते हैं। इन शब्दों का भूत-कालिक विशेषण रूप 'स्वीकृत' होता है। यदि आप ध्यानपूर्वक देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि हिन्दी के बहुत अधिक लेखक 'स्वीकृत' की जगह और उसके अर्थ में 'स्वीकार' का प्रयोग करते हैं। 'हम आपकी बात स्वीकार करते हैं।' और 'उन्होंने हमारी प्रार्थमा स्वीकार कर ली' सरीखे प्रयोग नित्य देखने में आते हैं। इस प्रकार के प्रयोगों की अशुद्धता इसी बात से सिद्ध हो जाती है कि इन प्रयोगों में हम 'स्वीकार' की जगह 'स्वीकरण' का प्रयोग नहीं कर सकते। अतः ऐसे अवसरों पर सदा 'स्वीकृत' शब्द का ही प्रयोग होना चाहिए। हिन्दी शब्द-सागर में 'स्वीकार' शब्द के पहले अर्थ के अन्तर्गत 'अंगीकार' के बाद 'कबूल' और 'मंजूर' जो दो और पर्याय दिये गये हैं, वे वास्तव में इसलिए ठीक नहीं हैं कि ये दोनों शब्द विशेषण हैं; और संज्ञा का अर्थ भी संज्ञा के रूप में ही होना चाहिए, विशेषण के रुप में नहीं। हाँ 'मंजूर' की जगह, 'मंजूरी' हो सकता है। 'उनकी सारी बुद्धिमत्ता यहाँ आकर लोप हो गई।' और 'अभी निश्चिय रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।' सरीखे प्रयोगों में 'लोप' और 'निश्चय' की जगह क्रमात् 'लुप्त' और 'निश्चित' होना चाहिए। यह विषय विशेष रूप से ध्यान देने के योग्य है।
आप प्रायः समाचार पत्रों में पढ़ते होगे-- 'बड़े-बड़े वैज्ञानिकों का यह मत है।' 'अच्छे-अच्छे साहित्यिक यहाँ एकत्र हुए थे।' 'कुछ ऐतिहासिक यह बात नहीं मानते।' आदि आदि। इनमें के 'वैज्ञानिक', 'साहित्यिक' और 'ऐतिहासिक' शब्द विशुद्ध विशेषण हैं। पर कुछ ऐसी प्रथा सी चल गई है कि सभी लोग इन्हें संज्ञाएँ मानकर उन्हीं के समान इनका प्रयोग करते हैं। वस्तुतः ऐसे अवसरों पर वैज्ञानिक की जगह 'विज्ञानवेत्ता' अथवा 'विज्ञानज्ञ', 'साहित्यिक' की जगह 'साहित्यश' और 'ऐतिहासिक' की जगह 'इतिहासज्ञ' का प्रयोग होना चाहिए । 'विज्ञानज्ञ' के अर्थ में 'वैज्ञानिक' और 'साहित्यज्ञ' के अर्थ में 'साहित्यिक' सरीखे शब्दों का प्रयोग सदा के लिए बन्द हो जाना चाहिए। इस प्रकार के प्रयोग हिन्दी भाषा के कलंक हैं।
हिन्दी में आजकल एक और शब्द बहुत अधिक प्रचलित हो गया है, जो अनेक प्रकार के अवसरों पर अनेक प्रकार के अशुद्ध अर्थों में प्रचलित होता है। वह शब्द है 'अधिकृत'। इसका प्रयोग लोग अंगरेजी के आथारिटेटिव (Authoritative), आथराइज्ड (Authorised) और आथारिटेटिव्ली (Authoritatively) आदि अनेक शब्दों के स्थान पर करते हैं। यद्यपि संज्ञा के रूप में इस शब्द का अर्थ है- 'अधिकारी' या 'अध्यक्ष' पर इस अर्थ में यह कभी हिन्दी में प्रयुक्त नहीं होता । हिन्दी में यह सदा विशेषण के रूप में ही आता है; और विशेषण के रूप में इसका एक ही अर्थ है- 'जिस पर अधिकार कर लिया गया हो' या 'जो अधिकार में आ गया हो'। और इस अर्थ का ध्यान रखते हुए- 'हमें अधिकृत रूप से यह पता चला है' या 'अधिकृत क्षेत्रों में यह बात सुनी गई है।' सरीखे प्रयोग नितान्त अशुद्ध हैं। इनके स्थान पर क्रमात् 'आधिकारिक' और 'अधिकारी' अथवा इसी प्रकार के और शब्दों का प्रयोग होना चाहिए। कभी-कभी लोग 'उन्हें इस बात का अधिकार दिया गया है' के अर्थ में लिख जाते हैं- 'उन्हें इस बात के लिए अधिकृत किया गया है।' ऐसा प्रयोग भी नितान्त अशुद्ध है। इसका अर्थ तो यही होगा कि उन्हें इस बात के लिए अपने अधिकार में कर लिया गया है। अतः ऐसे प्रयोग नितान्त दूषित और त्याज्य हैं।
-रामचन्द्र वर्मा