प्रेमचंद के बचपन की घटना है। उनके चाचा ने सन बेचा। और उसके रुपए लाकर उन्होंने ताक पर रख दिये। आपने अपने चचेरे भाई से सलाह की जो उम्र में आप से बड़े थे। दोनों ने मिलकर रुपए ले लिये। आप रुपए उठा तो लाये, मगर उन्हें ख़र्च करना नहीं आता था। चचेरे भाई ने उस रुपए को भुनाकर बारह आने मौलवी साहब की फीस दी। और बाकी चार आनों मे से अमरुद, रेवाड़ी वगैरह लेकर दोनों भाइयों ने खायी।
चाचा साहब ढूँढते हुए वहां पहुँचे और बोले--तुम लोग रुपया चुरा लाये हो?
प्रेमचंद के चचेरे भाई ने कहा—हाँ, एक रुपया भैया लाये हैं।
चाचा साहब गरजे--वह रुपया कहां है?
मौलवी साहच को फीस दी।
चाचा साहब दोनों लड़कों को लेकर मौलवी साहब के पास पहुंचे और बोले--इन लड़कों ने आपको पैसे दिये हैं?
'हाँ, बारह आने दिये हैं।'
'उन्हें मुझे दीजिए।'
चाचा साहब ने लड़कों से फिर पूछा--चार आने कहाँ है?
'उसका अमरूद लिया।'
चाचा अपने लड़के को पीटते हुए घर लाये। प्रेमचंद डरते हुए घर पहुंचे। प्रेमचंद की माँ देवर के लडके को पिटता देखकर इन्हें भी पीटने लगीं। प्रेमचंद की चाची ने दौडकर छुड़ाया।
प्रेमचंद सोचने लगे, ‘मुझे ही क्यों छुड़ाया, अपने बच्चे को क्यों नहीं छुड़ाया?’ वे यह नहीं जान सके सोचा, ‘शायद मेरी दुर्बलतावश उन्हें दया आ गई हो।‘
[भारत-दर्शन संकलन]