दिल्ली में रेलवे स्टेशन पर भारी भगदड़! रेलवे के प्लेटफार्म फार्म पर छूटे हुए थैले, चप्पल, अटैचियाँ, बैग, रोते हुए लोग, अपनों को खोने के कारण अर्द्धविक्षिप्त अस्त-व्यस्त लोग! टीवी चैनलों, सोशल मीडिया पर दिल्ली में हुई रेलवे दुर्घटना बार-बार दिखाई जा रही थी। भय से बार-बार किरण का मन उछलकर हाथ में आ रहा था। कल ही तो वे सब भी पहुँचे थे दिल्ली! उसका पति रोहित अपने और उसके माता-पिता को लेकर कुंभ- स्नान के लिए दिल्ली से ट्रेन द्वारा इलाहाबाद जानेवाला था। ...और एकाएक यह दुर्घटना? किसे फोन करे? कोई भी मोबाइल नहीं उठा रहा।
वह स्वयं इस छोटे से शहर में एक पुलिस इंस्पेक्टर है। बच्चियों की परीक्षा के कारण वह रुक गई थी। उसे पता है कि भीड़ भेड़ों की तरह होती है। बिना विवेक एक ही दिशा में। उसकी आँखे पनीली हो गई हैं, लोगों का दुख उसे विचलित कर रहा है।
तकनीकी की दुनिया में दो दिन बिना किसी समाचार के? फ़ोन की भीषण चुप्पी उसे किसी अनिष्ट की आहट दे रही थी। ऐसा तो नहीं है रोहित, किसी से फ़ोन लेकर ही बात करवा देता!
टीवी में समाचारों से उसका दिल दहल रहा था। सरकार पर निरंतर आरोप लगाए जा रहे थे। विपक्ष के नेता टीवी पर आलोचना करने में एकदम आगे! संवेदना इनसे कोसों दूर थी। इनका परिवार सुरक्षित था, है, और रहेगा। बहती गंगा में हाथ धोने को सारे धूर्त नेता ऐसी-ऐसी टिप्पणियाँ दे रहे थे--मानो यह दुर्घटना कोई 'न भूतो न भविष्यत्' हो। ये कब दोष देना छोड़ेंगे एकदूसरे को? बजाय भाषणबाज़ी के स्वयं कुछ क्यों नहीं करते! टीवी पर से हटते ही जश्न मनाते हैं।
अक्सर आम आदमी पर ही कहर क्यों टूटता है? भीड़ का मनोविज्ञान! उसे राजनीति शास्त्र में पढ़ी लोकतंत्र की परिभाषा याद आने लगी। जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा शासन….।
यदि जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन है, तो क्या स्वयं की सुरक्षा जनता की ज़िम्मेदारी नहीं? आग दिख रही है तो पतंगा क्यों बन रहे हैं। कुछ तो बस टीवी फुटेज में बिना बात सिर घुसा लेते हैं।
सबको संस्कारित होने की आवश्यकता है! ऐसी दुर्घटनाओं के लिए सब उत्तरदायी हैं। कौन है सरकार? हम ही तो हैं न! दूसरे पर दोषारोपण करना आसान है। हम अपने मालिक हैं, हमें अपना ख्याल खुद ही रखना होगा। अचानक उसके मन का भार उतर गया।
तभी फ़ोन की घंटी बजी, उसका मस्तिष्क पुलिस इंस्पेक्टर की खोल में घुस गया।
“जनता बाज़ार में एक दुकान में आग लग गई है, शीघ्र पहुँचो!"
फ़ोन पर ही सैल्यूट करते हुए वह बोली, 'जी सर अभी पहुँच रही हूँ।'