भूख-गरीबी
करा देती है दूर
बड़े करीबी।
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औढ़ू, बिछाऊं
भाषण तुम्हारा ये
किसे खिलाऊँ?
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सेवक भाई!
भाषण देता नहीं,
रोटी-कपड़ा!
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जाने दे यार
देखा है हमने भी
नेताई प्यार।
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सुनाता है तू
भूखे को कोई राग
दे रोटी-साग!
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सपने अच्छे हैं
लेने-देने को पर...
पेट भरेंगे?
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भाषण, नारे
और कुछ जलसे
क्या करते हैं?
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- रोहित कुमार 'हैप्पी'