भाषा किसी भी राष्ट्र की आत्मा होती है। वह न केवल विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है, बल्कि समाज की सांस्कृतिक धरोहर और पहचान का आधार भी है। जब हम हिंदी भाषा और साहित्य के उन्नायकों की चर्चा करते हैं तो सबसे पहले स्मरण आता है आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र का, जिन्होंने हिंदी को जन-जन की भाषा बनाकर उसे सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय अस्मिता से जोड़ा।
भारतेंदु और हिंदी का जागरण
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने साहित्य को मात्र मनोरंजन का साधन न मानकर समाज में सार्थक हस्तक्षेप का उपकरण बनाया। अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के विरुद्ध उन्होंने हिंदी को जागरण और प्रतिरोध की भाषा बनाया। उनका दृढ़ विश्वास था कि मातृभाषा में ही वास्तविक उन्नति संभव है। यही कारण है कि उनकी यह कालजयी पंक्तियाँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं—
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को सूल॥”
भारतेंदु और हिंदी का जागरण
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने साहित्य को मात्र मनोरंजन का साधन न मानकर समाज में सार्थक हस्तक्षेप का उपकरण बनाया। अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के विरुद्ध उन्होंने हिंदी को जागरण और प्रतिरोध की भाषा बनाया। उनका दृढ़ विश्वास था कि मातृभाषा में ही वास्तविक उन्नति संभव है। यही कारण है कि उनकी यह कालजयी पंक्तियाँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं—
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को सूल॥”
वर्तमान संदर्भ में हिंदी की स्थिति
आज हिंदी विश्व की प्रमुख भाषाओं में गिनी जाती है और करोड़ों लोग इसे बोलते हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी इसकी उपस्थिति दर्ज है। किंतु विडंबना यह है कि अपने ही देश में हिंदी की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती। हम हिंदी दिवस, पखवाड़ा और आयोजनों तक सीमित होकर रह गए हैं। यह उत्सवधर्मिता औपचारिकता निभाती है, लेकिन वास्तविक प्रचार-प्रसार और वैज्ञानिक विकास की दिशा में गंभीर प्रयास अभी भी अपेक्षित हैं।
विज्ञान, प्रौद्योगिकी और हिंदी
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिंदी का शब्दकोश अब भी अपूर्ण है। यदि हम जापान जैसे देश का उदाहरण लें तो वहाँ शिक्षा और शोध का बड़ा हिस्सा मातृभाषा में ही संपन्न होता है। इसीलिए वे बिना अंग्रेज़ी के दबाव के भी तकनीकी दृष्टि से अग्रणी बने हुए हैं। भारत में भी यदि हम ठोस संकल्प लें, तो हिंदी को विज्ञान और तकनीक की भाषा बनाना कोई कठिन कार्य नहीं है।
आधुनिक संचार माध्यम और हिंदी
आज का युग सूचना और तकनीकी का युग है। इंटरनेट, मोबाइल, सोशल मीडिया और ई-मेल जैसे मंचों पर हिंदी का प्रयोग अब सहज और स्वाभाविक होता जा रहा है। हिंदी टाइपिंग टूल, अनुवादक एप्लिकेशन और डिजिटल सामग्री इसके प्रसार को और भी सुगम बना रहे हैं। आवश्यकता केवल इस बात की है कि हम स्वयं हिंदी को व्यवहार की भाषा बनाने का संकल्प लें।
किसी भी राष्ट्र की वास्तविक प्रगति तभी संभव है जब उसकी जड़ें अपनी मातृभाषा में गहरी हों। अंग्रेज़ी और अन्य भाषाएँ हमारे लिए अवसरों के द्वार खोल सकती हैं, किंतु हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारा स्वाभिमान हिंदी से ही जुड़ा है। इसलिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हिंदी केवल उत्सवों की भाषा न रह जाए, बल्कि शिक्षा, विज्ञान, तकनीक और प्रशासन की सशक्त भाषा बने।
यही भारतेंदु की परिकल्पना थी और तभी उनकी यह उक्ति सच्चे अर्थों में सार्थक होगी—
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।”
[भारत-दर्शन संकलन]