शुक्रवार व्रतकथा | Shukrwar Katha

एक बुढिया थी।उसका एक ही पुत्र था। बुढिया पुत्र के विवाह के बाद ब से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लडका देखता पर माँ से कुछ भी नहीं कह पाता। ब दिनभर काम में लगी रहती- उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपडे धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता।

काफी सोच-विचारकर एक दिन लडका माँ से बोला- 'माँ, मैं परदेस जा रहा ँ। माँ को बेटे की बात पसंद आ गई तथा उसे जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- 'मैं परदेस जा रहा ँ। अपनी कुछ निशानी दे दे। ब बोली- 'मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।

पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढते गए। एक दिन ब दु:खी हो मंदिर चली गई। वहाँ उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियाँ पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है।

स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुध्द जल ले गुड-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से माँ का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना। एक वक्त भोजन करना।

व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया। कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- 'संतोषी माँ की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है। अन्य सभी स्त्रियाँ भी श्रध्दा से व्रत करने लगीं। ब ने कहा- 'हे माँ! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूँगी।

अब एक रात संतोषी माँ ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं। रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत माँगी। पर सेठ ने इनकार कर दिया। माँ की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चाँदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्जदार भी रुपया लौटा गए। अब तो साकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी।

घर आकर पुत्र ने अपनी माँ व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की। पडोस की एक स्त्री उसे सुखी देखर् ईष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर माँगना।

उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे। तो ब ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे। तो ब पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकडकर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो ब ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया।

संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने माँगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी माँ प्रसन्न हुईं। नौमाह बाद चाँद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, ब तथा बेटा माँ की कृपा से आनंद से रहने लगे।

 

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