मैंने जन्मा है तुझे अपने अंश से संस्कारों की घुट्टी पिलाई है । जिया हमेशा दिन-रात तुझको ममता की दौलत लुटाई है ।
तेरे आँसू के मोती सहेजे हमेशा स्नेह की सुगंध से महकायी है । उच्च विचारों की आचार-संहिता भी तुझे सिखाई-समझाई है ।
हर पल अपने सपनों में तेरे लिए खुशियों की बारात सजाई है । फिर भी क्यों कहती है दुनिया बेटी तू मेरी नहीं पराई है ।
साजन की दहलीज पर जब पहुँची तब माना गया तू परजायी है । रीति-रिवाजों की ये क्रूर-श्रृंखला आखिर क्यों तेरे लिए बनाई है? आखिर किसने तेरे लिए बनाई है??
- रीता कौशल, ऑस्ट्रेलिया
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