सामने आईने के जाओगे? इतनी हिम्मत कहां से लाओगे?
सख्त मुश्किल है सामना अपना किस तरह खुद को मुंह दिखाओगे
है बहुत बेनियाज़ यह दुनिया नाज़ किस-किस के तुम उठाओगे
ख़ार बोकर गुलों की ख्वाहिश क्यों रंज देकर खुशी न पाओगे
ये बड़े लोग हैं बहुत छोटे देख लोगे जब आज़माओगे
दूर भागोगे उतने ही इनसे जितने इन के करीब जाओगे
उतना बेचैन तुमको कर देगा दर्द को जिस क़दर दबाओगे
भूलना चाहते तो हो उनको ‘राणा' साहब न भूल पाओगे
- डॉ राणा प्रतापसिंह ‘राणा' गन्नौरी
ख़ार = कांटा
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