श्रीसीतारामाभ्यां नम:
ध्यान
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर । ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसी तोर ॥
सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास । हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास ॥
पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत । सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत ॥
राम-नाम-जपकी महिमा
चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत । राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत ॥
पय अहार फल खाइ जपु राम नाम षट मास । सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ॥
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार । तुलसी भीतर बाहरेहुँ जौं चाहसि उजियार ॥
हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन रसना राम सुनाम । मनहुँ पुरट संपुट लसत तुलसी ललित ललाम ॥
सगुन ध्यान रुचि सरस नहिं निर्गुन मन ते दूरि । तुलसी सुमिरहु रामको नाम सजीवन मूरि ॥
एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ । तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ॥
नाम राम को अंक है सब साधन हैं सून । अंक गएँ कछु हाथ नहिं अंक रहें दस गून ॥
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु । जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु ॥
राम नाम जपि जीहँ जन भए सुकृत सुखसालि । तुलसी इहाँ जो आलसी गयो आजु की कालि ॥
नाम गरीबनिवाज को राज देत जन जानि । तुलसी मन परिहरत नहिं घुर बिनिआ की बानि ॥
कासीं बिधि बसि तनु तजें हठि तनु तजें प्रयाग । तुलसी जो फल सो सुलभ राम नाम अनुराग ॥
मीठो अरु कठवति भरो रौंताई अरु छैम । स्वारथ परमारथ सुलभ राम नाम के प्रेम ॥
राम नाम सुमिरत सुजस भाजन भए कुजाति । कुतरुक सुरपुर राजमग लहत भुवन बिख्याति ॥
स्वारथ सुख सपनेहुँ अगम परमारथ न प्रबेस । राम नाम सुमिरत मिटहिं तुलसी कठिन कलेस ॥
मोर मोर सब कहँ कहसि तू को कहु निज नाम । कै चुप साधहि सुनि समुझि कै तुलसी जपु राम ॥
हम लखि लखहि हमार लखि हम हमार के बीच । तुलसी अलखहि का लखहि राम नाम जप नीच ॥
राम नाम अवलंब बिनु परमारथ की आस । बरषत बारिद बूँद गहि चाहत चढ़न अकास ॥
तुलसी हठि हठि कहत नित चित सुनि हित करि मानि । लाभ राम सुमिरन बड़ो बड़ी बिसारें हानि ॥
बिगरी जनम अनेक की सुधरै अबहीं आजु । होहि राम को नाम जपु तुलसी तजि कुसमाजु ॥
प्रीति प्रतीति सुरीति सों राम राम जपु राम । तुलसी तेरो है भलो आदि मध्य परिनाम ॥
दंपति रस रसना दसन परिजन बदन सुगेह । तुलसी हर हित बरन सिसु संपति सहज सनेह ॥
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास । रामनाम बर बरन जुग सावन भादव मास ॥
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