आँख बंद कर सोये चद्दर तान के, हम ही हैं वो सेवक हिन्दुस्तान के ।
बहते-बहते पार लगे हैं हम चुनाव की बाढ़ में, स्वतंत्रता को पकड़ रखा है हमने अपनी दाढ़ में । हीरे औ' माणिक हैं हम ही प्रजातंत्र की खान के कोई कहता काम चाहिए, कोई कहता रोटी दो, कोई नंगा खड़ा सामने कहता हमें लंगोटी दो । सुनते-सुनते हाय हो गये बहरे दोनों कान के ।
चार साल दिल्ली में काटे, बाकी जन-सम्पर्क में, सारी शक्ति लगा देते है, अपनी पंचम वर्ष में । गरज-गरज कर भाषण देते हम बादल-तूफान के ।
कब किससे मांगा हमने, देनेवाले दे जाते हैं, दे कर बहती गगा में, नैय्या अपनी खे जाते हें, रामराज के जादूगर, हम सौदागर ईमान के ।।
-शैल चतुर्वेदी
साभार: भारतीय मूर्ख शिरोमणी १९७५
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