माँ की ममता जग से न्यारी !
अगर कभी मैं रूठ गया तो, माँ ने बहुत स्नेह से सींचा । कितनी बड़ी शरारत पर भी, जिसने कान कभी ना खीँचा । उसके मधुर स्नेह से महकी, मेरे जीवन की फुलवारी । माँ की ममता जग से न्यारी !
बिस्तर-बिना सदा जो सोई, मेरी खातिर नरम बिछौना । मुझे बचाया सभी बला से, बाँध करधनी लगा डिठौना । सारे जग से जीत गई पर, मेरी जिद के आगे हारी । माँ की ममता जग से न्यारी !
माँ, तेरी प्यारी बोली का, दुनिया भर में मोल, नहीं है । तेरी समता करनेवाला, हीरा भी अनमोल,नहीं है । तेरी गोद स्वर्ग से सुंदर, तू सारी दुन्या से प्यारी । माँ की ममता जग से न्यारी !
चाहे कितनी मजबूरी हो, माँ, बच्चे को नहीं सतातीष अपना दर्द छुपाए दिल में, उस पर सारा प्यार लुटाती । तन-मन न्योछावर कर देती, सुनते ही शिशु की किलकारी । माँ की ममता जग से न्यारी !
भले कोई माँ के कदमों में, जीवन भर भी शीश झुकाए। मगर कभी क्या मुमकिन भी है, कि वह माँ का कर्ज चुकाए ? माँ की एक साँस भी शायद, पूरे जीवन पर है भारी । माँ की ममता जग से न्यारी !
- डॉ. शम्भुनाथ तिवारी प्रोफेसर हिंदी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़(भारत) संपर्क-09457436464 ई-मेल: sn.tiwari09@gmail.com
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