फीज़ी में अनुबंधित श्रम
दीनबंधु सी. एफ. एंड्रयूज़ ने दक्षिण अफ्रीका व फीज़ी में बसे अनुबंधित श्रमिकों के लिए बहुत काम किया। वे सितंबर 1915 में अपने एक साथी 'डब्ल्यू. डब्ल्यू. पियरसन' के साथ फीज़ी के शर्तबंध मज़दूरों (Indentured Labourers) की परिस्थितयों की जानकारी लेने फीज़ी गये थे।
फीज़ी से भारत लौटने पर 19 फरवरी 1916 को उन्होंने अपनी रिपोर्ट 'फीज़ी में अनुबंधित श्रम' (Indentured Labour in Fiji) जारी की थी। इसके बाद भारत में इसके विरोध में भारी जन-आंदोलन हुए। इस संदर्भ में सी. एफ. एंड्रयूज़ व पियर्सन की रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है। इस रिपोर्ट ने फीज़ी में श्रमिक महिलाओं की दयनीय दशा उजागर की जिससे भारतीयु महिलाओं ने इस 'अनुबंधित श्रम कुप्रथा' को बंद करने के लिए जन-आंदोलन किए। लोग सड़कों पर उतर आये और अँग्रेजी शासकों पर भारी दबाव पड़ा। इसी रिपोर्ट के फलस्वरूप जनवरी 1920 में 'अनुबंधित श्रमिक प्रथा' का अंत हो गया।
भारत से फीज़ी आने वाला पहला जहाज था लियोनिडास जो 498 मज़दूर सवारियों को लेकर 3 मार्च 1879 को कलकत्ता से रवाना हुआ और 72 दिन की समुद्री यात्रा के पश्चात 14 मई 1879 को यह जहाज फीज़ी के बंदरगाह पर पहुँचा। इन 498 सवारियों में 273 पुरूष, 146 महिलाएं व 79 बच्चे सम्मिलित थे। 72 दिनों की इस समुद्री यात्रा के दौरान 17 यात्रियों की बीमार पड़ने से मृत्यु हो गई।
1879 से 1916 के बीच 87 बार भारत से समुद्री जहाज बंधुआ मज़दूरों को फीज़ी लेकर आए जिसमें 42 विभिन्न जहाजों का उपयोग हुआ था। कुल 60,995 लोगों ने फीज़ी के लिए प्रस्थान किया किंतु कुल 60,553 ही फीज़ी पहुँच पाए, इनमें यात्रा के दौरान पैदा हुए कुछ नवजात शिशु भी सम्मिलित थे। शेष काल की गर्क में चले गए।
फिर शुरू हुआ इन भोले-भाले लोगों का गिरमिटिया जीवन। गिरमिट अँग्रेज़ी शब्द 'एग्रीमेंट' का अपभ्रंश है। शुरुआत में आये ये लोग पढ़े-लिखे न थे यथा 'एग्रीमेंट' की जगह 'गिरमिट' शब्द प्रचलित हो गया।
[प्रवासी भारतीय - इतिहास के पन्नों से] |