जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे, हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे, तो अपने जी में यह समझो, दिन अच्छे आने वाले हैं ।
जब पड़ा विपद का डेरा हो, दुर्घटनाओं ने घेरा हो, काली निशि हो, न सबेरा हो, उर में दुख-दैन्य बसेरा हो, तो अपने जी में यह समझो, दिन अच्छे आने वाले हैं ।
जब मन रह-रह घबराता हो, क्षण भर भी शान्ति न पाता हो, हरदम दम घुटता जाता हो, जुड़ रहा मृत्यु से नाता हो, तो अपने जी में यह समझो, दिन अच्छे आने वाले हैं ।
जब निन्दक निन्दा करते हों, द्वेषी कुढ़-कुढ़ कर मरते हों, साथी मन-ही-मन डरते हों, परिजन हो रुष्ट बिफरते हों, तो अपने जी में यह समझो दिन अच्छे आने वाले हैं ।
बीतती रात दिन आता है, यों ही दुख-सुख का नाता है, सब समय एक-सा जाता है, जब दुर्दिन तुम्हें सताता है, तो अपने जी में यह समझो, दिन अच्छे आने वाले हैं ।
- गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
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