देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

दिन अच्छे आने वाले हैं

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 गयाप्रसाद शुक्ल सनेही

जब दुख पर दुख हों झेल रहे, बैरी हों पापड़ बेल रहे,
हों दिन ज्यों-त्यों कर ढेल रहे, बाकी न किसी से मेल रहे,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

जब पड़ा विपद का डेरा हो, दुर्घटनाओं ने घेरा हो,
काली निशि हो, न सबेरा हो, उर में दुख-दैन्य बसेरा हो,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

जब मन रह-रह घबराता हो, क्षण भर भी शान्ति न पाता हो,
हरदम दम घुटता जाता हो, जुड़ रहा मृत्यु से नाता हो,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

जब निन्दक निन्दा करते हों, द्वेषी कुढ़-कुढ़ कर मरते हों,
साथी मन-ही-मन डरते हों, परिजन हो रुष्ट बिफरते हों,
तो अपने जी में यह समझो
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

बीतती रात दिन आता है, यों ही दुख-सुख का नाता है,
सब समय एक-सा जाता है, जब दुर्दिन तुम्हें सताता है,
तो अपने जी में यह समझो,
दिन अच्छे आने वाले हैं ।

- गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

 

Back
 
Post Comment
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश