नहीं है आदमी की अब कोई पहचान दिल्ली में मिली है धूल में कितनों की ऊँची शान दिल्ली में
तलाशो मत मियाँ रिश्ते, बहुत बेदर्द हैं गलियाँ बड़ी मुश्किल से मिलते है सही इंसान दिल्ली में
शराफ़त से किसी भी भीड़ में होकर खड़े देखो कोई भी थूक देगा मुँह पे खाकर पान दिल्ली में
जिन्हें लूटा नहीं कोई बड़ी तक़दीर वाले हैं यहाँ फूलन की भी लूटी गई दुकान दिल्ली में
गली- कूचे- मुहल्ले- सड़क- चौराहे- कहीं भी हों जहाँ भी जाइए हर वक्त ख़तरे- जान दिल्ली में
सुनाएँ क्या कहानी भीड़वाली बस में चढ़ने की हथेली पर लिए फिरते हैं अपनी जान दिल्ली में
पते की पर्चियाँ ज़ेबों में डाले कर सफ़र वर्ना सड़ेगी लाश लावारिस बिना पहचान दिल्ली में
लफंगे- चोर- चाईं- गिरहकट- गुंडे- लुटेरों से मुझे तो दूर ही रखना मेरे भगवान दिल्ली में
घुटन होती है सुनकर दास्ताने-शहर दिल्ली की जहाँ जीना भी, मरना भी, नहीं असान दिल्ली में
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डॉ.शम्भुनाथ तिवारी एसोशिएट प्रोफेसर(हिंदी) अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़(भारत) Email -sn.tiwari09@gmail.com Phone no.09457436464(M)
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