प्रतिपल घूँट लहू के पीना, ऐसा जीवन भी क्या जीना ।
बहुत सरल है घाव लगाना, बहुत कठिन घावों का सीना ।
छेड़ गया सोई यादों को, सावन का मदमस्त महीना ।
पीठ न वीर दिखाते रण में, छलनी भी हो जाये सीना ।
जो मरने से तनिक न डरता, जीना है उसका ही जीना ।
काव्य-कला-साधन में 'राणा', "एक हुआ है खून-पसीना ''
- डा राणा प्रताप सिंह राणा गन्नौरी
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