देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

प्रतिपल घूंट लहू के पीना | ग़ज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 डा. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'

प्रतिपल घूँट लहू के पीना,
ऐसा जीवन भी क्या जीना ।

बहुत सरल है घाव लगाना,
बहुत कठिन घावों का सीना ।

छेड़ गया सोई यादों को,
सावन का मदमस्त महीना ।

पीठ न वीर दिखाते रण में,
छलनी भी हो जाये सीना ।

जो मरने से तनिक न डरता,
जीना है उसका ही जीना ।

काव्य-कला-साधन में 'राणा',
"एक हुआ है खून-पसीना ''

- डा राणा प्रताप सिंह राणा गन्नौरी

 

 

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