देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं । सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं ॥
धूमधाम से साजबाज से मंदिर में वे आते हैं । मुक्तामणि बहुमूल्य वस्तुएँ लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं ॥
मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी । फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी ॥
धूप दीप नैवेद्य नहीं है झांकी का शृंगार नहीं । हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं ॥
मैं कैसे स्तुति करूँ तुम्हारी ? है स्वर में माधुर्य नहीं । मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं ॥
नहीं दान है, नहीं दक्षिणा ख़ाली हाथ चली आयी ॥ पूजा की विधि नहीं जानती फिर भी नाथ! चली आयी ॥
पूजा और पुजापा प्रभुवर ! इसी पुजारिन को समझो । दान दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो ॥
मैं उन्मत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ । जो कुछ है, बस यही पास है इसे चढ़ाने आयी हूँ ॥
चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो । यह तो वस्तु तुम्हारी ही है, ठुकरा दो या प्यार करो ॥
- सुभद्रा कुमारी चौहान |