देहात का विरला ही कोई मुसलमान प्रचलित उर्दू भाषा के दस प्रतिशत शब्दों को समझ पाता है। - साँवलिया बिहारीलाल वर्मा।

दिवाली के दिन | हास्य कविता

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 गोपालप्रसाद व्यास | Gopal Prasad Vyas

''तुम खील-बताशे ले आओ,
हटरी, गुजरी, दीवट, दीपक।
लक्ष्मी - गणेश लेते आना,
झल्लीवाले के सर पर रख।

कुछ चटर-मटर, फुलझडी, पटाके,
लल्लू को मँगवाने हैं।
तुम उनको नहीं भूल जाना,
जो खाँड-खिलौने आने हैं।

फिर आज मिठाई आयेगी,
शीला के घर पहुंचानी है।
नल चले जायेंगे जल्द उठो,
मुझको तो भरना पानी है।''

''है झूठ चलेंगे नल दिन-भर
क्या मालुम नहीं दिवाली है?
इस गर्वमिंट के शासन में
पानी की क्या कंगाली है!

पर खील मँगाती दो सुनकर
दिल खील-खील हो जाता है ।
यह तुम्हें नहीं मालूम,
खील-चावल का कैखा नाता है?

चावल की खीलें बनती हैं,
वह चावल 'चोरबजार' गया।
सो मिलता है बेमोल, सोचकर
खील मँगाओ मत कृपया।

ये खाँड - खिलौने बने नहीं,
शक्कर पर प्रिय, कन्ट्रोल हुआ।
हो गई मिठाई तेज कि खोआ
भी बजार से गोल हुआ।

'फिर रहम करो, मत चटर-मटर
फुमझडी पटाके मँगवाओ।
इनमें विस्फोटक चीजें हैं
सुन लेगा कोई भय खाओ।

हुं: मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश का
पूजन भी क्या करती हो?
मैं लम्बोदर, गजदंत, चरण
मेरे क्यों नहीं पकड़ती हो?

औ' मैं तो सदा-सदा से तुमको
लक्ष्मी कहता आया हूं।
ऐ गृहलक्ष्मी, घर की शोभा,
मैं इन चरणों की छाया हूं!

जिस दिन से घर में आई हो
उस दिन से सदा दिवाली हैं।
मैं अन्दर से धनवान, सिर्फ
बाहर से ही कंगाली है।

सो इसकी चिन्ता नहीं, आज
मैं खुद ही शेव बना लूंगा।
है अभी चमक जिसमें बाकी
वह काला कोट निकालूंगा।

शीला को लेना साथ रोशनी
तुमको आज दिखायेंगे।
धण्टेघर के चौराहे पर
बस चाट-पकौड़ी खायेंगे।

लल्लू को लेंगे गुब्बारा
वह हँसता-हँसता आयेगा।
इस भांति दिवाली का मेला,
सस्ते ही में हो जायेगा ।

- गोपालप्रसाद व्यास

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