झंझा सोई, तूफान रूका, प्लावन जा रहा कगारों में; जीवित है सबका तेज किन्तु, अब भी तेरे हुंकारों में।
- दो दिन पर्वत का मूल हिला,
- फिर उतर सिन्धु का ज्वार गया,
- पर, सौंप देश के हाथों में
- वह एक नई तलवार गया।
’जय हो’ भारत के नये खड्ग; जय तरुण देश के सेनानी! जय नई आग! जय नई ज्योति! जय नये लक्ष्य के अभियानी!
- स्वागत है, आओ, काल-सर्प के
- फण पर चढ़ चलने वाले!
- स्वागत है, आओ, हवनकुण्ड में
- कूद स्वयं बलने वाले!
मुट्ठी में लिये भविष्य देश का, वाणी में हुंकार लिये, मन से उतार कर हाथों में निज स्वप्नों का संसार लिये।
- सेनानी! करो प्रयाण अभय,
- भावी इतिहास तुम्हारा है;
- ये नखत अमा के बुझते हैं,
- सारा आकाश तुम्हारा है।
जो कुछ था निर्गुण, निराकार, तुम उस द्युति के आकार हुए, पी कर जो आग पचा डाली, तुम स्वयं एक अंगार हुए।
- साँसों का पाकर वेग देश की
- हवा तवी-सी जाती है,
- गंगा के पानी में देखो,
- परछाईं आग लगाती है।
विप्लव ने उगला तुम्हें, महामणि उगले ज्यों नागिन कोई; माता ने पाया तुम्हें यथा मणि पाये बड़भागिन कोई।
- लौटे तुम रूपक बन स्वदेश की
- आग भरी कुरबानी का,
- अब "जयप्रकाश" है नाम देश की
- आतुर, हठी जवानी का।
कहते हैं उसको "जयप्रकाश" जो नहीं मरण से डरता है, ज्वाला को बुझते देख, कुण्ड में स्वयं कूद जो पड़ता है।
- है "जयप्रकाश" वह जो न कभी
- सीमित रह सकता घेरे में,
- अपनी मशाल जो जला
- बाँटता फिरता ज्योति अँधेरे में।
है "जयप्रकाश" वह जो कि पंगु का चरण, मूक की भाषा है, है "जयप्रकाश" वह टिकी हुई जिस पर स्वदेश की आशा है।
- हाँ, "जयप्रकाश" है नाम समय की
- करवट का, अँगड़ाई का;
- भूचाल, बवंडर के ख्वाबों से
- भरी हुई तरुणाई का।
है "जयप्रकाश" वह नाम जिसे इतिहास समादर देता है, बढ़ कर जिसके पद-चिह्नों को उर पर अंकित कर लेता है।
- ज्ञानी करते जिसको प्रणाम,
- बलिदानी प्राण चढ़ाते हैं,
- वाणी की अंग बढ़ाने को
- गायक जिसका गुण गाते हैं।
आते ही जिसका ध्यान, दीप्त हो प्रतिभा पंख लगाती है, कल्पना ज्वार से उद्वेलित मानस-तट पर थर्राती है।
- वह सुनो, भविष्य पुकार रहा,
- "वह दलित देश का त्राता है,
- स्वप्नों का द्रष्टा "जयप्रकाश"
- भारत का भाग्य-विधाता है।"
- [साभार-सामधेनी, उदयाचल, पटना]
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