बाबुल अब ना होएगी, बहन भाई में जंग डोर तोड़ अनजान पथ, उड़कर चली पतंग
बाबुल हमसे हो गई, आख़िर कैसी भूल क्रेता की हर शर्त जो, तूने करी कबूल
धरती या कि किसान से, हुई किसी से चूक फ़सल के बदले खेत में, लहके है बंदूक
अद्भुत है, अनमोल है, महानगर की भोर रोज़ जगाए है हमें, कान फोड़ता शोर
रोटी-रोज़ी में हुई, सारी उम्र तमाम कस्तूरी लम्हे हुए, बिना-मोल निलाम
- राजगोपाल सिंह |