राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। - अवनींद्रकुमार विद्यालंकार।

वीरांगना

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 केदारनाथ अग्रवाल | Kedarnath Agarwal

मैंने उसको
जब-जब देखा,
लोहा देखा।
लोहे जैसा
तपते देखा, गलते देखा, ढलते देखा
मैंने उसको
गोली जैसा चलते देखा।

- केदारनाथ अग्रवाल

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