जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

मुहब्बत की जगह | ग़ज़ल

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 संध्या नायर | ऑस्ट्रेलिया

मुहब्बत की जगह, जुमला चला कर देख लेते हैं
ज़माने के लिए, रिश्ता चला कर देख लेते हैं

खरा हो या कि हो खोटा, खनक तो एक जैसी है
किसी कासे में ये सिक्का चला कर देख लेते हैं

हमारी जीभ से अक्सर फिसलने को तरसता है
है कितनी दूर का किस्सा, चला कर देख लेते हैं

तसल्ली हो गई हमको, यहां सब यार हैं अपने
इन्ही के बीच में घपला चला कर देख लेते हैं

बदलती शक्ल पर खर्चा किये जाने से अच्छा है
कोई फोटो पुराना सा चला कर देख लेते है

अटक जाए कोई फाइल तो रिश्वत से छुड़ाते हैं
ज़रूरत हो ,तो हम क्या ना चला कर देख लेते हैं

नसीहत रोज चारागर यहां तब्दील करते हैं
कभी मीठा कभी कड़वा चला कर देख लेते हैं

कभी जो अपनी कुव्वत का नमूना देखना चाहें
हमे अपने खिलौनों सा चला कर देख लेते हैं

खुदा महफूज़ रखे चांद को, उन चांद वालों को
जो अपनी ईद पर चिमटा चला कर देख लेते हैं

मसाइल डाल रोटी के अगर लगते तुम्हे छोटे
तुम्हारे कायदे ,कुनबा चला कर देख लेते है

अभी तक मुल्क की उंगली पकड़ रक्खी थी टेढों ने
चलो इस मुल्क को सीधा चला कर देख लेते हैं

- संध्या नायर 
  मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया 
  ई-मेल : sandhyamordia@gmail.com

Back

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें