जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

वे और तुम | हज़ल

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 जैमिनी हरियाणवी | Jaimini Hariyanavi

मुहब्बत की रियासत में सियासत जब उभर जाये 
प्रिये, तुम ही बताओ जिन्दगी कैसे सुधर जाये? 

चुनावों में चढ़े हैं वे, निगाहों में चढ़ी हो तुम 
चढ़ाया है तुम्हें जिसने कहीं रो-रो न मर जाये! 

उधर वे जीतकर लौटे, इधर तुमने विजय पाई 
हमेशा हारने वाला जरा बोलो किधर जाये?

वहाँ वे वॉट के इच्छुक, यहाँ तुम नोट की कामी 
कहीं यह देनदारी ही हमें बदनाम कर जाये! 

पुजारी सीट के वे हैं, पुजारी सेज की तुम हो 
तुम्हारे को समझने में कहीं जीवन गुजर जाये! 

उधर चमचे खड़े उनके, इधर तुमपर फिदा हैं हम 
हमें अब देखना है भाग्य किसका कब सँवर जाये? 

वहाँ वे दल बदलते हैं, यहीं तुम दिल बदलती हो 
पड़ी है बान दोनों को कि वचनों से मुकर जाये। 

उन्हें माइक से मतलब है, तुम्हें मायका प्यारा 
तुम्हारा क्या बिगड़ता है, उठे कोई या मर जाये? 

तुम्हारा शब्द तो मेरे लिए रोटी का लुकमा है 
जरा तकरीर दे डालो कि मेरा पेट भर जाये।

- जैमिनी हरियाणवी

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