जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।

इसलिए तनहा खड़ा है

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 राजगोपाल सिंह

इसलिए तनहा खड़ा है
है अभी उसमें अना है

बिन बिके जो लिख रहा है
हममें वो सबसे बड़ा है

भीड़ से बिल्कुल अलग है
आज भी वो सोचता है

ख़ून दौड़े है रग़ों में
जब कभी वो बोलता है

कल उसी पर शोध होंगे
आज जो अज्ञात-सा है

-राजगोपाल सिंह

 

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