मैं नहीं समझता, सात समुन्दर पार की अंग्रेजी का इतना अधिकार यहाँ कैसे हो गया। - महात्मा गांधी।

बदन पे जिसके... 

 (काव्य) 
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रचनाकार:

 गोपालदास ‘नीरज’

बदन पे जिसके शराफत का पैरहन देखा 
वो आदमी भी यहाँ हमने बदचलन देखा 

खरीदने को जिसे कम थी दौलते दुनिया 
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा 

मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख्मी 
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरन देखा 

बड़ा न छोटा कोई, फर्क बस नज़र का है 
सभी पे चलते समय एक-सा कफन देखा 

ज़बाँ है और, बयाँ और, उसका मतलब और 
अजीब आज की दुनिया का व्याकरण देखा 

लुटेरे, डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे 
उन्होंने आज जो संतों का आचरण देखा 

जो सादगी है कहन में हमारे 'नीरज' की 
किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा

-नीरज 

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