देखो, माँ! नभ में आ पहुँचे, ये घनघोर सुघड़ बादल। इन्हें देखकर इतराई, झूमी, हवा हुई कितनी चंचल॥
उड़े जा रहे आसमान में, बादल अपनी मस्ती में। पता नहीं ये उड़ते उड़ते जायेंगे किस बस्ती में॥
मन करता है, नभ तक जाकर, इनको बाहों में भर लूँ। काश, साथ में उड़कर इनके मैं अपने मन की कर लूँ॥
दूर दूर तक होकर आऊँ, चढ़कर बादल के रथ पर। झूम झूमकर खुशी मनाऊँ, इन्द्रधनुष वाले पथ पर॥
मैं भी देखूँ, कहाँ रीझकर, बरसेंगे बादल प्यारे। अहा, अचानक उत्सव होगा, हरषेंगे जब जन सारे॥
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला |