राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है। - महात्मा गाँधी।

काका हाथरसी की दो हास्य कविताएं

 (काव्य) 
Print this  
रचनाकार:

 काका हाथरसी | Kaka Hathrasi

चोटी के कवि
 
बोले माइक पकड़ कर, पापड़चंद ‘पराग’।
चोटी के कवि ले रहे, सम्मेलन में भाग॥
सम्मेलन में भाग, महाकवि गामा आए।
काका, चाचा, मामाश्री, पाजामा आए॥
हमने कहा, व्यर्थ जनता को क्यों बहकाते?
दाढ़ी वालों को भी, चोटी का बतलाते॥

 
दाढ़ी का सम्मान
 
ईर्ष्या करने लग गए, क्लीन शेव्ड इंसान।
फ़िल्म-जगत के बढ गया, दाढ़ी का सम्मान॥
दाढ़ी का सम्मान, देख दाढ़ी को डरती।
वही तारिका आज, मुहब्बत इससे करती॥
‘राजश्री’ ने काका कवि की, लज्जा रख ली।
अमरीकन दाढ़ी वाले से, शादी कर ली॥
 
-काका हाथरसी

Back

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें