एक औरत जो दफन बरसों से उसने न जाने कैसे सांसों के आरोह-अवरोह में कहीं सपने चुनने-बुनने आरंभ कर दिए...!
यूँ तो प्रकृति कहीं मरुस्थल-सी.. पर स्वेद-जल-समुद्र-से पाकर प्रेम-ऊष्मा-ताप यूँ ही .. बरसी-रिमझिम-पगलाई-सी..
भीगी कमली-सी फ़िर ओढ़ तितली पंख-छतरी नाची यूँ दीवानी-दीवानी सी..!
-डॉ॰ सुनीता शर्मा ऑकलैंड, न्यूज़ीलैंड ई-मेल: adorable_sunita@hotmail.com
[चिर-प्रतीक्षित] |