लेखक का गुण एक ही करै भँडौती धाय। पुरस्कार पै हो नज़र ग्रांट कहीं मिल जाय॥
तू लिख तारीफ़ मैं और करैं विपरीत। लेखन ऐसे ही चलै गाल बजावन रीति॥
रोज़ चार कर काव्य सृजन एक व्यंग्य को खींच। फ़ेसबुकवा पै छाप कै बड़ौ रचक बन लीज।।
कालजयी रचना करत गुणवत्ता पै ध्यान। कागज़ काले कर बढ़ै तू पीछे छुट जान॥
चाहे लिखते श्रेष्ठ पर दूजन गुट का होज। कूड़ा वा साबित करौ एड़ी चोटी ओज॥
लेखक बड़ बनना चहै दाढ़ी कुरता लेय। यार कलब मैं बैठि कै धुआँधार करि देय॥
भाषा जानत है नहिं नहीं ध्यान में कथ्य। लेखक इतने आ गये पाठक एक न रथ्य॥
अफ़सर बड़े रसूख के रचते भर भर काव्य। हाथ बाँधि छापक खड़ा टेंडर पास कराव्य॥
-प्रो॰ राजेश कुमार |